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जैन-विभूतियाँ आपका अध्यापक जीवन उसी वर्ष फरीदपुर राजेन्द्र कॉलेज से प्रारम्भ हुआ। 1944 में आप पूना कॉलेज ऑफ कॉमर्स से जुड़े एवं 1946 तक वहीं रहे। तत्पश्चात् आप कलकत्ता में जयपुरिया कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। कुछ समय तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में भी प्रशिक्षण किया।
सन् 1945 में आपका विवाह कमला सामसुखा से हुआ।
सन् 1949 में आपने इन्स्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग एण्ड इकोनामिक्स की स्थापना की जो आगे जाकर अर्थ वाणिज्य गवेषणा मन्दिर के रूप में विकसित हुआ। यहीं से आपने वर्तमान अर्थनीति की समस्याओं पर सैकड़ों परिपत्र निकाले जिनकी छात्रों एवं शिक्षकों में काफी माँग रही।
सन् 1951 में आपने दिल्ली पोलिटेकनीक में योग दिया। दिल्ली में आप तीन वर्ष से अधिक नहीं रहे। सन् 1954 में आप इण्डियन इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी के तत्कालीन डाइरेक्टर डॉ. ज्ञानचन्द्र घोष के आग्रह पर खड़गपुर आए और वहीं अपना सम्पूर्ण जीवन बिताया। जब आप खड़गपुर में थे 1960-61 में टी.सी.एम. प्रोग्राम में अमेरिका गए और नौ महीने तक वहीं अवस्थित रहकर वहाँ के विभिन्न विश्वविद्यालयों में भाषण दिए। लौटते समय आपने लन्दन, पेरिस, बर्लिन, जेनेवा, रोम, एथेन्स आदि स्थानों का भ्रमण किया। सन् 1980 में "द्वितीय अन्तर्जातीय कांग्रेस ऑफ लीगल साइन्स' का अधिवेशन नीदरलैण्ड के अमस्टारडम शहर में हुआ था। वहाँ भी आप आमंत्रित होकर गए एवं अपने विचार व्यक्त किये।
सन् 1982 में आपने आई.आई.टी. के ह्युमनिटिज डिपार्टमेन्ट के अध्यक्ष के रूप में अवकाश प्राप्त किया। आपने अवकाश प्राप्त समय के लिए भी एक प्रोग्राम बनाया था-अपने असमाप्त ग्रन्थों एवं नये ग्रन्थों के सृजन के लिए। किन्तु भवितव्यता कुछ और ही थी। पूर्णत: स्वस्थ एवं कर्मठ व्यक्ति जिन्होंने जीवन में कभी दवाई खायी ही नहीं, अचानक फरवरी, 1983 में करोनरी थम्बोसिस से आक्रान्त हुए। फिर आश्चर्यजनक रूप से स्वस्थ भी हो गए पर वह स्वस्थता स्वल्पकालीन