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जैन- विभूतियाँ
70. श्री कस्तूरचन्द ललवानी (1921-1983)
जन्म
: राजशाही, बंगलादेश,
पिताश्री
: रावतमल ललवानी
माताश्री : भृतु बाई उपलब्धियाँ : आंग्ल अनुवाद : उत्तराध्ययन
सूत्र, दशवैकालिक सूत्र, कल्पसूत्र, जैन कहानियाँ
297
कृतियाँ
1921
: Burden of the Past, Meddeval Muddle, Sunset in India, General theory : 1983
दिवंगत
सरस्वती मन्दिर के मौन जैन साधकों में श्री कस्तूरचन्द ललवानी उल्लेखनीय है। प्रख्यात अर्थशास्त्री, दार्शनिक, इतिहासवेत्ता एवं अधिकारी जैन विद्वान् कस्तूरचन्दजी का जन्म राजशाही ( बंगला देश) में सन् 1921 की 21 जनवरी के दिन हुआ था। आपके पिताश्री व्यापारी होते हुए भी पक्के व्यवसायी नहीं थे। वे सामान्य मुनाफा रखते थे । हृदय इतना दयालु था कि यदि कोई याचक आ जाता तो परिवार की चिन्ता कि बिना उसको दान देकर तृप्त कर देते थे। उदारता के चलते एक बार उन्हें पाँच वर्ष तक निरन्तर एकाहारी रहना पड़ा था। वे शिक्षा प्रेमी थे। अपने पुत्रों को पढ़ाने में किसी भी प्रकार की मानसिक संकुचितता को स्थान नहीं दिया। उनकी यह भावना सार्थक हुई । कस्तूरचन्द मेधावी छात्र थे। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उन्हें दो छात्रवृत्ति भी मिली जिसमें एक संस्कृत के लिए थी । इण्टरमीडियट परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के कारण आपने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्वर्णपदक व राजशाही कॉलेज से रजत पदक प्राप्त किया। आपने बी. ए. अर्थशास्त्र में ऑनर्स लेकर प्रथम श्रेणी से पास किया। सन् 1943 में आपने एम.ए. में भी कलकत्ता विश्वविद्यालय से फर्स्ट क्लास प्राप्त किया ।
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