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जैन - विभूतियाँ
राष्ट्रीय समिति का गठन हुआ। श्री विनोबा भावे के सान्निध्य में जैन समाज को "समण सुत्त" नामक सर्वमान्य ग्रंथ की ऐतिहासिक भेंट आप ही के सद्प्रयासों का सुफल था।
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तेजस्वी जैन छात्रों के शिक्षण की व्यवस्था एवं निराधार गरीब महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने की दृष्टि से रांकाजी के प्रयास से "जैन गृह उद्योग'' नामक संस्था की स्थापना हुई । इस हेतु उन्होंने पूना के पास चिचंवड़ में एवं अहमदनगर के पास चांदवड़ में "जैन विद्या प्रचारक मण्डल " की स्थापना की। इन संस्थाओं से विद्याथियों को स्कॉलरशिप दी जाती है।
इस तरह सतत राष्ट्र एवं समाज की सेवा करते हुए सन् 1977 में काजी ने देह त्याग किया।