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जैन-विभूतियाँ
295 वे महात्म गाँधी, सेठ जमनालाल बजाज, बाल गंगाधर तिलक, बालकृष्ण गोखले आदि उच्च कोटि के नेताओं के निकट सम्पर्क में रहे। सेवा, स्वार्थ त्याग, समाज कल्याण की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। रचनात्मक कार्यों में रुचि के कारण सभी से उनके आत्मीय सम्बन्ध रहे। हरिजनोद्धार, गौ-सेवा के विभिन्न कार्यक्रमों से वे सर्वदा जुड़े रहे।
उनके पुत्र राजेन्द्र की अल्पवय में मृत्यु हो गई थी, जिससे उनके हृदय पर वज्रावात हुआ। पर स्वतंत्रता संघर्ष के सेनानी ने यह आघात सहकर भी अपनी प्रवृत्तियाँ चालू रखी। बिहार, गुजरात एवं राजस्थान के दुष्काल एवं भूकम्प पीड़ितों की सहायतार्थ बड़ी तत्परता से उन्होंने सेवा कार्यों को अन्जाम दिया। मुम्बई में महावीर कल्याण-केन्द्र की स्थापना का श्रेय आपको ही था। इस संस्था द्वारा लाखों लोगों तक अनाज व कपड़ा पहुँचाया गया। उनके रहवास की व्यवस्था कर इस संस्था ने ऐतिहासिक महत्त्व का काम किया।
सन् 1946 से वे ''भारत जैन महामण्डल'' की प्रवृत्तियों से जुड़े। वे समस्तं जैन समाज की एकता के प्रबल समर्थक थे एवं सदैव इस हेतु प्रयत्नशील रहे। सन् 1948 में आपने संस्था के मुखपत्र "जैन जगत'' का सम्पादन भार संभाला। थोड़े ही समय बाद वे संस्था के प्रधानमंत्री मनोनीत हुए। सन् 1949 में मण्डल के मद्रास अधिवेशन के वे सभापति चुने गए। चन्द वर्षों में ही वे समस्त जैन समाज में लोकप्रिय हो गए। सन् 1958 से मुम्बई को उन्होंने अपना स्थायी निवास बना लिया। सन् 1971-72 में भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाण महोत्सव समिति के वे महामंत्री चुने गए। इस समिति द्वारा साहित्य, शिक्षण, सेवा, तीर्थोद्धार, स्मारकों की रचना, नये चाँदी के सिक्कों का भारत सरकार द्वारा निर्माण एवं वितरण, कलात्मक चित्रों की प्रदर्शनी, सत्साहित्य का प्रकाशन एवं देश-विदेश में भगवान के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार आदि विविध कार्यों का सफलता से संचालन किया गया।
सन् 1968 में वे अखिल भारतीय अणुव्रत समिति के उपाध्यक्ष चुने गए। आपने कुछ समय तक 'अणुव्रत' पत्र का सम्पादन भार भी संभाला। समाज की एक सूत्रता एवं सर्वमान्य जैन दर्शन संहिता के निर्माणार्थ एक