SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 294 जैन-विभूतियाँ 69. श्री ऋषभदास रांका (1903-1977) जन्म : फतेपुर (खानदेश), 1903 पिताश्री : प्रतापमलजी रांका दिवंगति : मुम्बई, 1977 समस्त जैन समाज के श्रद्धाभाजन ओसवाल कुल दीपक श्री ऋषभदास रांका सौजन्य की प्रतिमूर्ति थे। रांकाजी का जन्म महाराष्ट्र के खानदेश जिले में फतेहपुर ग्राम में सन् 1903 में हुआ। उनके पूर्वजों का मूल रहवास राजस्थान था। रांका गौत्र की उत्पत्ति गौड़ क्षत्रियों से मानी जाती है। इनके पूर्वजों में रांका और बांका दो भाई हुए। रांका के वंशज 'रांका' गोत्र नाम से चिह्नित हए। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार इनके पूर्वज पंजाब में रांका जाति की भेड़ों की ऊन का व्यवसाय करते थे अत: 'रांका' कहलाए। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ऋषभदास ने कपड़ा-व्यवसाय में अपने पिता प्रतापमल की सहायत करने लगे थे। कुछ वर्ष तक "बच्छराज खेती लिमिटेड' कम्पनी में भागीदार रहकर खेती की एवं एक डेयरी स्थापित की। तदुपरांत वे बीमा व्यवसाय से जुड़े। यही उनके अर्थोपार्जन का प्रमुख जरिया रहा। सन् 1971 में वे सम्पूर्णत: व्यवसाय से निवृत्त होकर समाज-सेवा को समर्पित हो गए। ___ जब वे मात्र 20 वर्ष के थे तभी से उन पर राष्ट्रीयता का रंग चढ़ने लगा था। वे महात्मा गाँधी के स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित होकर खादी के प्रचार-प्रसार एवं वितरण व्यवस्था के कार्य में लगे। सन् 1931 में नमकसत्यागह में सक्रिय भाग लेने से साढ़े चार मास जेल भुगती। सन् 1932 में भी जेल गए। सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में तेरह महीने जेल काटी। राष्ट्रीय संग्राम में उनका अवदान जैन समाज के लिए फन की बात थी। प्रारम्भ में वर्धा, जलगाँव, पूना उनके राष्ट्रीय कार्यकलापों का क्षेत्र रहा।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy