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________________ जैन-विभूतियाँ 289 तेरापंथ सम्प्रदाय में आचारिक नवोन्मेष को उनका पूर्ण समर्थन प्राप्त था। वे जीवनभर आगमों के शोधकार्य में संलग्न रहे। उन्होंने इस हेतु 'जैन दर्शन समिति' की स्थापना की। आगमों में वर्णित विषयों का दशमलव प्रणाली से वर्गीकरण कर उनका कोश निर्माण उनकी मौलिक परिकल्पना का अंग था। उन्होंने लेश्या कोष, क्रिया कोष, वर्धमान जीवन कोष, योग कोष, पुद्गल कोष तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस शोध यज्ञ में सहायक बने श्री श्रीचन्दजी चोरड़िया। इन ग्रंथों में से कुछ उनकी मृत्योपरांत ही प्रकाशित हो सके। उन्होंने जैन तत्त्व ज्ञान की परीक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम तैयार किए। तत्त्वज्ञान की सर्वप्रथम परीक्षाएँ चालू करने का श्रेय भी मोहनलालजी को है। आचार्य तुलसी ने उनके शोध-अवदान का सम्मान करते हुए उन्हें 'तत्त्वज्ञ श्रावक' विरुद से विभूषित किया। जब तेरापंथी महासभा द्वारा आगम शोध का प्रकाशन कार्य आरम्भ हुआ तो इसके प्रणेता 'महादेव कुमार सरावगी ट्रस्ट की ओर से यह दायित्व मोहनलालजी को ही सौंपा गया। उन्होंने ग्रंथों के कई फर्मे तैयार भी कर लिए। पर आचार्य तुलसी उनकी निष्पक्ष दृष्टि से संतुष्ट नहीं हुए। उनके आदेश से आगम सम्पादन व प्रकाशन का कार्य उनसे लेकर अन्य विद्वानों के सुपुर्द कर दिया गया। यह मोहनलालजी के सतत श्रम व अध्यवसाय का अपमान था। पर मोहनलालजी की आचार्य तुलसी के प्रति श्रद्धा लेशमात्र न डिगी। प्रणेता सरावगी बंधु आचार्यश्री से उस आदेश पर पुनर्विचार का भी अनुरोध करना चाहते थे। वे इस बदलाव के लिए तैयार न थे। परन्तु मोहनलालजी ने मना कर दिया एवं वे सदैव प्रकाशन कार्य में सहयोग करते रहे। __ मोहनलालजी प्रज्ञाशील कर्मयोगी थे। वे गृहस्थ की भूमिका में अवस्थित रहते हुए भी फलासक्ति से सर्वथा अलिप्त रहे। सन् 1976 में मोहनलालजी स्वर्गस्थ हुए।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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