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________________ जैन- विभूतियाँ पिता का देहांत हो गया। बड़े भाई युवावस्था में काल - कवलित हो गए। मोहनलालजी मेधावी थे। उन्होंने स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण की एवं संस्कृत में डिप्लोमा हासिल किया। उनका विवाह जियागंज के श्री बुधसिंहजी बोथरा की कन्या से हुआ। बड़े होकर मोहनलालजी ने कुछ समय तक पाट व्यवसाय में नौकरी की । तदनन्तर स्वयं विदेशों से आयात शुरु किया । विदेशी 'ताश' की सोल एजेंसी ली। उससे स्थाई आमदनी होने लगी । फिर छाता बनाने की स्टिक का जापान से आयात शुरु किया । 288 आप परिश्रमी, मिष्टभाषी, मिलनसार, स्वाभिमानी और स्वावलम्बी थे। अतः जीवन में समझौता करने से सदैव इन्कार करते रहे । पर किसी का विरोध भी नहीं किया। वे अनेक सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों से जुड़े। जैन सभा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, ओसवाल नवयुवक समिति आदि सार्वजनिक संस्थानों के महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे । आपको प्राचीन पांडुलिपियों के संकलन का शौक था। कुछ समय तक ओसवाल नवयुवक समिति के मुखपत्र 'ओसवाल नवयुवक' का सम्पादन भार संभाला। आप समिति की व्यायामशाला के उत्साही सदस्य थे। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा कलकत्ता के चुनाव में आप युवकों द्वारा मंत्री पद के प्रत्याशी रूप में खड़े किए गए। मुख्य श्रावकों द्वारा प्रत्याशी पद के लिए नाम वापिस लेने के अनुरोध एवं विरोध के बावजूद आप 'मंत्री' चुने गये। यह आपके प्रति युवकों की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक था । जैनधर्म की प्रभावना के लिए वे सदैव तत्पर रहते थे। सन् 1931 में अहमदाबाद एवं बड़ौदा में 'बाल दीक्षा निरोधक प्रस्ताव' आया तो आप उसका विरोध करने वालों में अग्रणी थे । अन्तत: प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। सन् 1970 में आचार्य तुलसी के रायपुर चातुर्मास के समय जब उनके ग्रंथ 'अग्नि परीक्षा' को लेकर विवाद उठा एवं मध्यप्रदेश सरकार ने ग्रंथ प्रतिबंधित घोषित कर दिया तो मोहनलालजी उसे न्यस्त करवाने में सतत् प्रयत्नशील रहे । अन्ततः वे सफल भी हुए । कलकत्ता में आचार्य तुलसी के चातुर्मास के दौरान जब मलमूत्र प्रकरण उठा तब भी मोहनलालजी ने समस्या का समाधान निकालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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