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जैन-विभूतियाँ ___67. श्री मोहनलाल बांठिया (1908-1976
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जन्म : 1908 पिताश्री : छोटूलाल बांठिया सृजन : लेश्या कोष, क्रिया कोष, वर्धमान
जीवन कोष, योग कोष, पुद्गल कोष दिवंगति : कलकत्ता, 1976
जैन दर्शन के उद्भट विद्वान् एवं ऊर्जाशील कर्मयोगी श्री मोहनलालजी बांठिया के जीवन प्रसंग प्रेरणास्पद हैं। उन्होंने जैनागमों एवं वाङ्मय का तलस्पर्शी अध्ययन कर जो नवनीत प्रस्तुत किया वह अभूतपूर्व है। आधुनिक दशमलव प्रणाली के आधार पर जैन-दर्शन एवं चारित्रिक विषयों का वर्गीकरण एवं प्रस्तुतीकरण उनकी मौलिक परिकल्पना का मूर्तरूप है, जिसने भारतीय दर्शन के सभी विद्वानों की भूरि-भूरि प्रशंसा अर्जित की है। उनके रूपायित कोशों की श्रृंखला की ज्ञानरश्मियाँ मिथ्यात्व एवं अज्ञान का अंधकार दूर करने में सक्षम है।
बांठिया गोत्र का प्रमुख केन्द्र बीकानेर रहा। वहाँ "बांठिया चौक" नाम से एक स्वतंत्र मौहल्ला है। यहीं के श्री जयपालजी बांठिया चूरू ब्याहे गये। वे चूरूं जाकर वहीं बस गये। चूरू के वर्तमान बांठिया परिवार उन्हीं के वंशज हैं। वे सभी प्रारम्भ में मंदिर मार्गी ओसवाल जैन थे। पायचन्दगच्छीय आराधना के लिए उन्होंने वहाँ उपासरा भी बनवाया जो अब भी मौजूद है। चूरू में बांठिया घरों की संख्या संवत् 1884 में मात्र 12 थी। वर्तमान में बांठिया परिवार के चूरू में करीब 70 घर हैं। सभी ने कालांतर में तेरापंथी सम्प्रदाय की आस्था अंगीकार की।
इन्हीं के वंशज श्री छोटूलाल जी बांठिया की सहधर्मिणी की कुक्षि से सन् 1908 में एक पुत्र रत्न ने जन्म लिया। नामकरण हुआमोहनलाल। जैन संस्कार उन्हें विरासत में मिले। शैशवावस्था में ही