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जैन- विभूतियाँ
हुआ जिनमें महात्मा गाँधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, लोकमान्य तिलक, मोतीलाल नेहरू, मौलाना अब्दूल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सी. आर. दास, सरदार पटेल इत्यादि प्रमुख थे। श्री नाहर ने 1930 में अपनी लॉ परीक्षाओं का असहयोग आन्दोलन के दौरान बहिष्कार किया। आपने असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया एवं इस दौरान भूमिगत भी हुए। भूमिगत रहकर आप आन्दोलन का सफलतापूर्वक संचालन करते रहे।
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आजादी के पूर्व जब काँग्रेस के नेताओं को कलकत्ता नगर में अपनी बैठक इत्यादि करने के लिए कोई समुचित स्थान उपलब्ध नहीं होता था तो आपने अपने निजी भवन 'कुमार सिंह हॉल' के द्वार खोल दिए, जिसमें कॉंग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठकें एवं अन्यान्य आयोजन अनेक वर्षों तक होते रहे ।
सन् 1942 में जब अखिल भारतीय काँग्रेस ने अपने ऐतिहासिक बम्बई · अधिवेशन में " अंग्रेजों भारत छोड़ो' प्रस्ताव पास किया तब जालिम अंग्रेज सरकार ने भारत के तमाम बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। श्री नाहर भी बंदी बनकार जेल भेज दिये गये । आपके साथ आपके दो परम मित्र श्री भँवरमल सिंघी एवं सिद्धराज ढढ्ढा भी गिरफ्तार कर लिए गये। सरकार ने तीनों साथियों को अलग-अलग तीन जेलों में रखा। द्वितीय महायुद्ध के बाद जब अंग्रेज सरकार के पैर लड़खड़ाने लगे तब काँग्रेस के सभी नेताओं को छोड़ दिया गया। श्री नाहर भी छोड़ दिये गये । नाहरजी ने पुनः राष्ट्रीय आन्दोलन में जोर-शोर से भाग लिया।
आप पश्चिम बंगाल प्रदेश कांगेस के 1950 से 1958 तक जनरल सैक्रेटरी, 1958 से 1960 तक कोषाध्यक्ष एवं 1969 से 1971 तक सभापति रहे ।
नगर के स्वायत्त शासन संस्थान कलकत्ता कॉरपोरेशन के आप 1933 से 1644 तक काउन्सिलर एवं 1918 से 1962 तक एल्डरमैन