________________
278
जैन-विभूतियाँ 65. लाला सुन्दरलाल जैन (1900-1978)
Per MUSTRANGE
जन्म : लाहौर, 1900 पिताश्री : मोतीलाल जैन (गधैया) दिवंगति : 1978
ओसवाल कुल के गधैया गोत्र की उत्पत्तिं चन्देरी के राठौड़ वंशीय राजा खरहत्थसिंह के परिवार से विक्रम की 12वीं शताब्दी में जैन धर्म अंगीकार कर लेने से मानी जाती है। उनके पुत्र गद्दा शाह के वंशज गधैया कहलाए। इस खानदान के लाला बूटे शाह लाहौर के प्रसिद्ध जौहरी थे। वे महाराजा रणजीतसिंह के कोर्ट ज्वेलर थे। आप लाहौर म्यूनिसिपलिटी के मेम्बर थे। इनके कनिष्ठ पुत्र महाराज शाह हुए। महाराज शाह के ज्येष्ठ पुत्र गंगाराम हुए। इनके पुत्र लाला मोतीलाल हुए। वे संस्कृत एवं अंग्रेजी-दोनों भाषाओं में निष्णात थे। उन्होंने पुश्तैनी जवाहरात के व्यवसाय से हटकर कुछ नया करने का संकल्प लिया।
बीसवीं शताब्दी के शुरु में लाला मोतीलाल ने अपनी धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने के लिए एक 'संस्कृत' पुस्तकों की दूकान करने की ठानी। सन् 1903 में उन्होंने अपनी सहधर्मिणी से ''ऊन की बुनाई' से अर्जित निजी आय में से सत्ताईस रुपए उधार लिए और एक छोटी-सी दूकान स्थापित की। उनका विश्वास था कि सभी भारतीय भाषाओं की जननी 'संस्कृत' को जिन्दा रखना उनका कर्त्तव्य है। शनै:शनै: यह छोटी-सी दूकान बड़ी होती गई एवं उन्होंने धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन शुरु कर दिया। उन्होंने अपने बड़े पुत्र बनारसीदास के सहयोग से 'मोतीलाल बनारसीदास' के नाम से लाहौर में प्रेस स्थापित की। कठिनाइयों के बावजूद अपने-अध्यवसाय, संघर्ष एवं दूर-दर्शिता से उन्होंने पुस्तक व्यवसाय में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। आप आत्माराम जैन सभा के गुजरानवाला अधिवेशन के सभापति चुने गए। आपका स्वर्गवास सन् 1929 में हुआ।