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जैन-विभूतियाँ सोसायटी ऑफ इंडिया के सदस्य भी रहे। अनेक सम्मेलनों में उन्होंने विविध विषयों पर सारगर्भित शोध-पत्रों का वाचन किया। इण्डियन हिस्ट्री • काँग्रेस, इन्टरनेशनल काँग्रेस ऑफ ओरियंटलिस्ट्स, ऑल इण्डिया
ऑरियन्टल कान्फ्रेंस आदि के समारोहों एवं अधिवेशनों में उन्होंने अपने शोध-प्रबंधों का वाचन प्रकाशन किया एवं भूरि-भूरि प्रशंसा पाई।
___ श्री रामचन्द्र जैन के 6 शोध-ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। "जया'' नामक उनकी शोध-कृति में उन्होंने महाभारत की कथा को नये ढंग से भारत की मूल श्रमण संस्कृति और ब्रह्मआर्यों की बार्हस्पत्य संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में उद्घाटित किया है।
उनके शोध-प्रबंध ''The Most Ancient Aryan Society'' का प्रकाशन सन् 1964 में हुआ। इस ग्रंथ में उन्होंने वेदों के आधार पर आर्यों की संस्कृति को उजागर किया है।
"The Ethnology of Ancient Bharat" उनके शोध-कार्यों का शिखर बिन्दु है। इसमें उन्होंने आर्यों के आगमन से पूर्व के भारत की तस्वीर खींची है। पाश्चात्य इतिहासकारों एवं फारसी लेखकों के हवाले से तत्कालीन भारत के मूल निवासियों का इतिहास उकेरा है। "The Great Revolution" नामक शोध-प्रबंध में उन्होंने ईसा-पूर्व 4000 वर्ष से मानव जाति के विकास-क्रम को मार्क्सवादी दृष्टि से विश्लेषित किया है। गाँधी और श्रमण-संस्कृति की रोशनी में मनुष्य के भावी विकास पथ का अनुसंधान किया है।
शोध-पत्र "Light Through the Long Darkness'' में उन्होंने आर्यों के मध्य एशिया से भारत में आने का इतिहास दर्ज किया है। ईसा पूर्व 1100 में मध्य एशिया के पर्वतीय इलाकों से उठे ब्रह्मआर्यन् हमलावारों के समूह ने उत्तरी भारत में अपने पाँव जमा लिए थे। उन्होंने आर्यावर्त की नींव रखी। ये भौतिक सम्पदा के लोलुपी थे। उनका जीवन लक्ष्य उपभोग तक सीमित था। भारत के मूल निवासी आर्हत संस्कृति के पोषक थे। मोहन जोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई में उसी श्रमण संस्कृति के साक्ष्य उजागर हुए हैं। वे लोग या तो दक्षिण की पहाड़ियों