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जैन-विभूतियाँ
275 एल.एल.बी. करने के लिए वे बीकानेर से बनारस चले गए। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से सन् 1937 में एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कर पुन: राजस्थान लौट आए। विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान उन पर महात्मा गाँधी, शिक्षाविद् मदनमोहन मालवीय आदि के सद्कार्यों का गहरा प्रभाव पड़ा। श्री जैन इस दौरान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्टूडेंट यूनियन के सचिव भी रहे।
श्री गंगानगर में एक ओर आपने वकालत का कार्य शुरु किया, दूसरी ओर स्वतंत्रता समर में भी सक्रिय हो गए। बहावल नगर (अब पाकिस्तान में) में अपनी पुस्तैनी जमीन की कानूनी लड़ाई के लिए एडवोकेट रामचन्द्र जैन को रायसिंहनगर जाना पड़ा। यह सन् 1946 की बात है। वहाँ एक राजनैतिक सम्मेलन में जब आप मंच पर भाषण दे रहे थे, उसी समय हुए गोली कांड में "बीरबल' शहीद हो गए। आपको भी कैद कर बीकानेर ले जाकर जेल में बंद कर दिया गया। उस समय आप प्रजा परिषद, गंगानगर के अध्यक्ष थे। रायसिंहनगर में आजादी का झंडा फहराने का श्रेय आपको ही है।
श्री जैन ने संत विनोबा के सर्वोदय एवं भूदान आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की। विनोबा जी से उनके आत्मीय सम्बंध इतने घने थे कि सन् 1977 में विनोबाजी के गुजर जाने के बाद वर्धा आश्रम के संचालन का भार उन्हें ही सौंपा गया। वे राजस्थान प्रदेश काँग्रेस समिति एवं अखिल भारतवर्षीय काँगेस कार्यकारिणी के भी सदस्य रहे।
सन् 1952 के बाद आपका रूझान भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, धर्म और इतिहास के अध्ययन, मनन की ओर हुआ। एक दशक में ही उनके निजी संग्रह में करीब दो हजार बहुमूल्य पुस्तकें एकत्र हो गई, जिन्होंने एक वृहद् पुस्तकालय का आकार ले लिया। वे स्वयं अपने आप में एक शोध संस्थान बन गये। मार्ग दर्शन के लिए अनेक शोधार्थी उनके पास आते थे। श्रीगंगानगर में 'इन्स्टीट्यूट ऑफ
भारतोलोजिकल रिसर्च' संस्थापित करने का श्रेय आपको ही है। आप .. आरियंटल हिस्ट्री कांग्रेस, राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस तथा आर्कियोलोजिकल