SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 272 जैन-विभूतियाँ उनके अध्यापन-सम्बंध रहे। इस बीच उनके शोध-पत्रों का वाचनप्रकाशन निरंतर होता रहा। वे जल्दी ही अपने विषय के विश्व प्रसिद्ध विद्वान् माने जाने लगे। "ज्ञानम् एव अमृतम्' उनका अध्यापन मंत्र था। वे शिवाजी विश्वविद्यालय के कुछ समय तक वाईसचांसलर भी नियुक्त हुए। सन् 1968 में उन्होंने कोल्हापुर में प्रथम 'अखिल भारतीय प्राकृतविद्या सेमिनार'' का संयोजन किया। सन् 1971-75 तक मैसूर विश्वविद्यालय के प्राच्य-भाषा विभाग को भी उन्होंने अपनी सेवाएँ दी। जैन जगत् को उन्होंने अनेकों शोध-उपहार दिए। सन् 1997 में जीवराज जैन ग्रंथमाला, सोलापुर द्वारा प्रकाशित सूचि के अनुसार उन्होंने कुल 35 शोध ग्रंथ लिखे, 165 शोधपत्र विश्व की विभिन्न शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और 76 समीक्षाएँ एवं 12 प्रा। उपाध्ये को है। उन्होंने जीवराज जैन ग्रंथमाला के 23 एवं भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली के 50 शोध-ग्रंथों का सम्पादन किया। इसके अलावा विश्वविद्यालयों के प्राकृत पाठ्यक्रम के लिए भी उन्होंने अनेक ग्रंथों का लेखन भार स्वीकारा। अपनी मातृ भाषा कन्नड़ में डॉ. उपाध्ये ने 18 शोध-प्रबंध लिखे। ___ सन् 1939 में डी.लिट्. की उपाधि के लिए जो शोध-प्रबंध उन्होंने लिखे वे अभूतपूर्व थे। वे तीन खण्डों में प्रकाशित हुए-आचार्य कुन्दकुन्द का 'प्रवचन सार' (1935), योगिन्दु देव का ‘परमात्म-प्रकाश' (1937) एवं जातसिनन्दी का 'वारांगचरित्' (1938)। सन् 1946 तक हैदराबाद के अखिल भारतीय प्राच्य विद्या कान्फ्रेंस के प्राकृत, पाली, जैन एवं बौद्ध विभाग के अध्यक्ष रहे। सन् 1963 में बिहार के गवर्नर द्वारा उन्हें 'सिद्धांताचार्य' के विरुद से अलंकृत किया गया। सन् 1966 में वे अलीगढ़ में आयोजित 23वें अखिल भारतीय प्राच्य विद्या कान्फ्रेंस के सभापति चुने गए। सन् 1967 में श्रावणबेलगोला में आयोजित 46वें कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष मनोनीत हुए। सन् 1971 में आस्ट्रेलिया के केनबेरा शहर में समायोजित 28वें अन्तर्राष्ट्रीय प्राच्य विद्या काँग्रेस में भारत के प्रतिनिधि की हैसियत से शामिल हुए। वहाँ उन्होंने
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy