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जैन-विभूतियाँ
भारत के प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी से अभिनन्दन स्वीकार
करते श्री जैनेन्द्र कुमार
भाषाओं में हुआ। पिछले 30 वर्षों में वे कोई सृजनात्मक साहित्य भी नहीं रच रहे थे। वे उपन्यासकार से अधिक विचारक रहे। जैनेन्द्र ने अपने जीवन में बहुत बाद बेटे दिलीप के लिए पूर्वोदय प्रकाशन शुरु किया। पर आदर्शवादी होने से घाटा ही खाया। कनिष्ठ पुत्र प्रदीप उसे संभालते हैं। बड़े बेटे दिलीप कुशाग्र बुद्धि एवं मेधावी थे। उसने तीव्र तार्किक पिता से भी विद्रोह किया। यह जैनेन्द्रजी के जीवन का कष्टपूर्ण अध्याय रहा। युवावस्था में ही दिलीप चल बसे। जैनेन्द्रजी को जीवन का सबसे बड़ा सदमा लगा। वे गम्भीर रूप से बिमार होकर बम्बई आये। अंतिम दो वर्ष पक्षाघात में रहे, नाड़ी भंग हो गया था। मेरुदण्ड में अस वेदना रहती। 24 दिसम्बर, 1988 के दिन उनका पार्थिव शरीर शांत हो गया। वे अपना मृत्यु-लेख इससे पूर्व खुद ही अपने संस्मरण ग्रंथ में "जैनेन्द्रकुमार की मौत पर' लिख चुके थे।