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जैन-विभूतियाँ
265 62. श्री जैनेन्द्र कुमार जैन (1909-1988)
जन्म : 1909 बोड़ियागंज (अलीगढ़) अभिभावक : (मामा) महात्मा भगवानदीन | माताश्री : रमा देवी धर्मपत्नि : श्रीमती भगवती देवी . कृतियाँ : परख, सुनीता, त्यागपत्र,
कल्याणी, सुखदा, विवर्त, व्यतीत, जयवर्धन, मुक्तिबोध, दशार्क (उपन्यास), जैनेन्द्र के विचार, काम प्रेम और विचार, समय और हम, प्रस्तुत प्रश्न (निबंध) दो चिड़ियाँ, जान्हवी (कहानी), प्रेम
में भगवान (अनुवाद) अलंकरण : पद्मश्री
दिवंगति : 24 अप्रैल, 1988 श्री जैनेन्द्रकुमार नव्य भारत के ऋषितुल्य साहित्यकार थे। उनकी सृजन चेतना वेद की ऋचाओं और उपनिषद के सूत्रों की भाँति बीज रूप आविर्भूत हुई। वे वाक् एवं शब्द के ऐसे स्वामी थे जो आत्मा की गहिरतम ध्वनियों से ऊर्जायित थे। उनकी भाषा मंत्र वत एवं सूत्रात्मक हैं। आर्ष भाषा के वे पहले हिन्दी रचनाकार थे। वे हिन्दी उपन्यास और कथा साहित्य के भीष्म पितामह कहे जाते हैं। उनकी रचनाएँ एक चैतन्यमहाभाव से तरंगित थी। उनकी सुनीता (उपन्यास की नायिका) का सहसा नग्न हो जाना इसी महाभाव की भूमिका में सम्भव हो सका। उक्त चित्रण ने तात्कालीन हिन्दी के साहित्य जगत में भूकम्प ला दिया था।
जैनेन्द्रजी कभी स्वयं कलम से नहीं लिखते थे। वे बोलते थे और कोई युवक या युवती उसे लिपिबद्ध करता चलता। उनके प्रथम वाक्य में सम्पूर्ण कथ्य का बीज छुपा रहता। उनका कोई कथानक