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जैन-विभूतियाँ में विलीन हो गई। उनकी मृत्यु पर श्रीमती क्रेमर ने जो मृत्युलेख भेजा वह इस प्रकार है
"उनकी मृत्यु की खबर सुनकर मेरे आँसुओं का बाँध टूट पड़ा। यह उनकी मृत्यु के दु:ख से नहीं क्योंकि परम आत्मा के वाहक इस जर्जर शरीर को छोड़ वे तो नि:संदेह विदेह हो गए थे। मेरे आँसू मेरे ही लिए थे क्योंकि गत दस वर्षों के पत्राचार से वे मेरे आध्यात्मिक मार्गदर्शक एवं गुरु बन गए थे। मैं अब उससे वंचित हो गई। मैं भरसक उनके दर्शन को मन, वचन एवं कर्म में परिणत करने का यत्न करूँगी।"
ओसवाल जाति ऐसे आध्यात्म योगी को पाकर धन्य हुई। उनके कनिष्ठ भ्राता श्री किशनचन्दजी को लिखे प्रेरणा दायक आध्यात्मोन्मुखी पत्राचार को डॉ. नेमीचन्द्र जैन (सम्पादक-तीर्थंकर) ने 'हरख-पत्रावली' नाम से सम्पादित कर सन् 1996 में प्रकाशित किया।