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जैन-विभूतियाँ 60. श्रीमती सुशीला सिंघी (1924-1998)
जन्म : लखनऊ, 1924 पिताश्री : अशर्फीलाल जैन माताश्री : कटोरी देवी
(मासी माँ : ईश्वरी देवी) पतिश्री : भंवरमल सिंघी शिक्षा : एम.ए. दिवंगति : रांची, 1998
आधुनिक युग में सामाजिक क्रांति की मशाल थाम कर सामाजिक विकास के लिए सतत संघर्ष करने वाली जैन महिलाओं में सुशीलाजी ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की।
पिताश्री अशर्फीलाल जैन लखनऊ में रेल के उच्च पदाधिकारी थे। 30 दिसम्बर, 1924 के दिन माँ श्रीमती कटोरीदेवी की कुक्षि से एक बालिका का जन्म हुआ। माली हालत अच्छी न थी। जल्दी ही टी.बी. से कटोरी देवी की मृत्यु हो गई। सुशीला जी तब छोटी सी थी। पिता ने माँ की मौसेरी बहन ईश्वरी देवी से पुनर्विवाह किया। ईश्वरीदेवी सुशीलाजी से मात्र 9 वर्ष बड़ी थी। दोनों में माँ-बेटी से ज्यादा सहेलियों का सा सम्बन्ध था। यह परिवार कलकत्ता आ बसा। सुशीलाजी की शिक्षा कलकत्ता में ही हुई। वे बहुधा स्कूली एवं सामाजिक गतिविधियों में भाग लिया करती थीं। विमाता ईश्वरी देवी से उनके सात भाई बहन हुए। सुशीलाजी जब 15 साल की थी तभी आगरा के श्री अशर्फीलाल जैन से ब्याह दी गई। परन्तु विधाता को यह रिश्ता मंजूर नहीं हुआ। शादी के डेढ़ साल बाद ही पति की मृत्यु हो गई। सुशीलाजी पीहर कलकत्ता चली आईं। जो चिंगारी दबी हुई थी राष्ट्रीय आन्दोलन की हवा पाकर लहक उठी। वे बढ़-चढ़कर राष्ट्रीय एवं सामाजिक क्रांति सम्मेलनों में भाग लेने लगी।