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जैन-विभूतियाँ 59. श्री यशपाल जैन (1912- )
हिन्दी पत्रकारिता एवं लेखन पर अपनी छाप छोड़ने वाले एवं समग्र जैनसमाज में अपनी क्रांतिकारी सोच से विशिष्ट पहचान बनाने वाले सरस्वती के वरद् पुत्र श्री यशपाल जैन का जन्म सन् 1912 में अलीगढ़ जिलान्तर्गत विजयगढ़ ग्राम
में हुआ। आपने सन् 1935 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण की एवं 1937 में एल.एल.बी. । छात्रावस्था में ही आपकी रुचि लेखन में थी। जब वे मात्र 9 वर्ष के थे, तभी उन्होंने हिन्दी में एक रोचक उपन्यास लिखकर सबको चकित कर दिया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद की 'साहित्यरत्न' उपाधि भी उन्होंने हासिल की।
सन् 1937 में वे राष्ट्रीय पुस्तकों के प्रकाशक सस्ता साहित्य मण्डल से जुड़े। उन्होंने सन् 1938-39 में 'जीवन-सुधा' का सम्पादन भार संभाला। सन् 1940 से 1946 तक टिकमगढ़ से प्रकाशित 'मधुकर' पत्र के संपादक रहे। सन् 1946 में सस्ता साहित्य मण्डल, दिल्ली के निर्देशक नियुक्त हुए। तभी से मण्डल द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय विचारों के पत्र ‘जीवन साहित्य' का सम्पादन भार भी आपके कंधों पर पड़ा। सन् 1975 में आप मण्डल के कार्यमंत्री मनोनीत हुए। आपके निर्देशन में मण्डल ने सांस्कृतिक एवं साहित्यिक महत्त्व के अनेक ग्रंथ प्रकाशित किए। उनके अनेक राष्ट्रीय महत्त्व के लेख अन्यान्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे। यशपाल जी जैन सिद्धांतों के अधिकारी व्याख्याता थे। बौद्ध ग्रंथों का उन्होंने गहन अध्ययन किया। वे महात्मा गाँधी और संत विनोबा के अहिंसापरक आदर्शों से बहुत प्रभावित थे। उन्हें गाँधीवाद का अधिकारी विद्वान् होने का श्रेय प्राप्त था। दिल्ली की भारतीय साहित्य परिषद् के वे अध्यक्ष चुने गए। राष्ट्रीय भाषा प्रचार समिति एवं चित्र कला संगम ने भी उन्हें अपना उपाध्यक्ष चुना। ... सन् 1972 में उन्होंने कनाडा एवं अमरीका की यात्रा की। उन्होंने उत्तरी अफ्रीका के भारतीय मूल के निवासियों के आमंत्रण पर सूरीनाम,