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जैन-विभूतियाँ 'रंगायन' एवं 'लोककला' पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। राजस्थान के सांस्कृतिक गौरव को उजागर करने वाले ढेर सारे प्रकाशन हुए हैं। विविध अंचलों में व्याप्त लोकधर्मी रंगीनियों को इस तरह सबके लिए सुलभ कर देने से एक सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण हुआ। विश्वविद्यालयों ने लोककला का पठन-पाठन शोध के लिए स्वीकृत किया। डॉ. महेन्द्र भानावत के निर्देशन में कला मण्डल में अब भी सामरजी का स्वप्न साकार हो रहा है। विदेशी कलाकारों का तो यह तीर्थस्थल ही बन गया है। उनके वरद पुत्र गोविन्द जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कठपुतली सर्कस को तो उन्होंने चमत्कार युक्त कर दिया था। उसके असमय निधन ने सामरजी को निढाल कर दिया।
सामरजी अपने वरद पुत्र गोविन्द के साथ लन्दन के विश्वप्रसिद्ध
कठपुतली विशेषज्ञ फिलपोट के वर्कशॉप में
सामरजी ने अनेक बार विदेश यात्राएँ की एवं लोककला का प्रदर्शन कर अपार ख्याति अर्जित की। संवत् 2024 में राज्य सरकार ने उन्हें राजस्थान संगीत नाटक अकादमी का अध्यक्ष मनोनीत किया। संवत्