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________________ 251 जैन-विभूतियाँ ___58. श्री देवीलाल सामर (1911-1982) जन्म पिताश्री अलंकरण दिवंगति : उदयपुर, 1911 : अर्जुनसिंह सामर : पद्मश्री (1968) : मुम्बई, 1982 राजस्थान की लोक संस्कृति को विश्व के कोने-कोने में पहुँचाने का श्रेय ओसवाल कुल दीपक श्री देवीलाल सामर को है। गर्मी की तपती दोपहरी और सर्दी की ठिठुराती रातों में गाँव-गाँव घूमकर इस कला उपासक ने लोक कथाओं के संरक्षण, संकलन एवं संवर्धन में जो योगदान दिया, वह स्वातंत्रोत्तर भारत के सांस्कृतिक इतिहास की विशिष्ट उपलब्धि है। आपका जन्म खैरादीवाड़ा, उदयपुर में 30 जुलाई, 1911 के दिन हुआ। आपके पिता अर्जुनसिंह जी पुत्र जन्म के तीन महीने पूर्व ही परलोकवासी हो गये थे। पाँच वर्ष बाद माता भी नहीं रहीं। उस समय रामलीला का अच्छा प्रसार था। बाहर से मण्डलियाँ आती थीं। देवीलालजी को रामलीला में इतना रस आया कि 11-12 वर्ष की उम्र में ही एक मण्डली के साथ निकल पड़े। मामा को यह मंजूर न हुआ तो उदयपुर में ही अपनी एक मण्डली बना ली-यही उनके कला जीवन की शुरुआत थी। जब से प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. मोहनसिंह मेहता के सम्पर्क में आये, जीवन में व्यवस्था एवं सुधार का सूत्रपात हुआ। 16 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया। संवत् 1984 में वे श्वसुर के प्रयत्न से पढ़ने काशी विश्वविद्यालय, बनारस चले आये। वहाँ अभिनय कला को उपयुक्त बढ़ावा मिला। वे नायक की भूमिकाओं में पारंगत हो गये एवं अच्छी ख्याति अर्जित की। यहीं उन्होंने संगीत एवं वायलिन की शिक्षा पायी। सन् 1930 की गाँधी की आँधी में वे भी बह गये। सत्याग्रह आन्दोलन में
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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