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________________ 249 जैन-विभूतियाँ प्रकाशनी' से 'वर्द्धमान महावीर' नाम से प्रकाशित हो चुकी है। आपका 'जैन धर्म व दर्शन' अजमेर से प्रकाशित हुआ है। आपकी लिखी एकांकियाँ कई-कई बार मंचस्थ हो चुकी हैं, वह भी मात्र कलकत्ता के विभिन्न रंगमंचों पर ही नहीं, शान्ति निकेतन, जियागंज, अजीमगंज एवं मधुवन में भी ये अभिनीत हुई हैं। आप द्वारा लिखित ''भगवान महावीर'' नाटक कलकत्ता आकाशवाणी से रेडियो कलाकारों द्वारा 1974-1975 में अभिनीत होकर प्रसारित हुआ है। आपकी व्यंग रचनाओं ने 'अन्तिम पृष्ठ: खत के रूप में चिन्तन' नाम से इन्दौर के तीर्थंकर में प्रकाशित होकर समाज को आलोकित किया है। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप में सभा समिति एवं आन्दोलन तक हुए। श्री ललवानी जी का सृजनात्मक वैशिष्ट्य यही है कि उन्होंने समस्त रसों का प्रयोग करने पर भी उसकी परिसमाप्ति शान्त और वैराग्य रस में ही की है। अत: आपकी समस्त रचनाएँ वैराग्य मूलक भावनाओं से उद्दीप्त हैं एवं पाठकों के मन को कथानकों की सहजता से उच्च्तर भूमिका में ले जाने में समर्थ हैं। जैन कथानकों की नीरस अभिव्यक्ति को इन्होंने ऐसा रसमय रूप दिया है कि वे पाठकों को मुग्ध किए बिना नहीं रहतीं। इनके साहित्य की इसी विशेषता को दृष्टिगत कर रायपुर के 'शान्ति विजय ज्ञानपीठ' ने आपको 1978 के श्रेष्ठ साहित्य सजन के लिए पुरस्कृत घोषित किया है। आपके ललित निबन्ध के लिए 'जिनेश्वर पुरस्कार निधि' ने भी एक पुरस्कार देने की 1982 में घोषणा की थी। व्यक्तिगत रूप में ललवानी जी सरल एवं निष्कपट थे। इनका स्वभाव मृदुल, शान्त, विनीत और लज्जालु था। वे अल्प-भाषी एवं भीड़ से बहुत दूर रहने वालों में से थे। आप साथ ही एक अच्छे कार्यकर्ता भी थे। जैन भवन का प्रकाशन, प्रबन्ध एवं विद्यालय संचालन आदि सभी कार्य आपसे जुड़े हुए थे। अपनी साहित्य-सृष्टि के अतिरिक्त वे देश-विदेश के जैन-अजैन पण्डितों को भी जैन विषयों के अध्ययन और गवेषणा के लिए उत्साहित करते रहते थे एवं उनकी रचनाओं को अपनी पत्रिकाओं में स्थान भी देते
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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