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जैन-विभूतियाँ इस भाँति की अन्य पुस्तकें लिखने का अग्रह किया। श्रीमती राजकुमारी बैंगानी द्वारा अनुदित होकर 1975 में यह ग्रंथ हिन्दी में भी प्रकाशित हुआ। हिन्दी में तो इसका द्वितीय संस्करण भी निकल चुका है। इसका सर्वाधिक प्रचार हुआ है-मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में।
3. "श्रमण संस्कृति की कविता'' (1974) में जैन आगम-ग्रन्थों के अंश विशेष का काव्यमय सरलतम वर्णन है। इसका श्रीमती बैंगानी कृत हिन्दी अनुवाद 1976 में प्रकाशित हो गया है।
4. "Thus Sayeth Our Lord, Teachings of Lord Mahavira" जैन आगम ग्रन्थों से महावीर वाणी का संक्षिप्त संकलन है। असाम्प्रदायिक चयन और भाषा के लिए इसे सभी पसन्द करते हैं। इसका तेलगु अनुवाद भी प्रकाशित हो गया है। भगवान महावीर के 2500वें निर्वाणोत्सव पर विदेशों में भेजने के लिए जिस किताब का चयन किया गया था वह यही थी।
5. "Essence of Jainism" श्री पूरणचन्द सामसुखा द्वारा बंगला में लिखी 'जैन धर्मेर परिचय' ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद है। इसका भी तेलगु भाषा में अनुवाद हुआ है। बम्बई से प्रकाशित 'प्रबुद्ध जीवन' ने इसका गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित किया है।
श्री ललवानीजी अधिकांशत: बंगला में ही लिखते थे और अनवरत। कहानी, कविता, नाटक, निबन्ध, नृत्य-नाटिकाएँ, व्यंग आदि प्राय: सभी विधाओं में आपने लिखे। वह भी पूर्ण अधिकार के साथ। इनकी 'नीलांजना' आदि 12 कहानियाँ श्रीमती बैंगानी द्वारा अनुदित होकर इन्दौर से निकलने वाले 'तीर्थंकर' में प्रकाशित हुई हैं। अपनी विशिष्ट शैली, भाव एवं भाषा के लिए बहुचर्चित होकर इन कहानियों ने पाठकों को आत्म-विभोर एवं मुग्ध किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक श्री वीरेन्द्र कुमार जैन ने ललवानी जी को एक पत्र लिखकर इसके लिए अभिनंदित किया था। आपकी 'चन्दनमूर्ति' भी श्रीमती बैंगानी द्वारा अनुदित होकर दिल्ली से प्रकाशित 'कथालोक' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई। 'श्रमण' में प्रकाशित भगवान महावीर की जीवनी भी हाल ही में 'करुणा