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जैन-विभूतियाँ 2. आचार्य विजयानन्द सूरि (1835-1896)
जन्म : सन् 1835, लहरा ग्राम
(फिरोजपुर) पिताश्री : गणेशचन्द कलश (क्षत्रिय) कपूर माताश्री : रूपा देवी पालन : लाला जौधमल नौलखा दीक्षा : मलेर कोटला, 1853, द्वितीय
दीक्षा-अहमदाबाद, सं. 1875 आचार्य पद : पालीताना, सं. 1886 दिवंगति : 1896, गुजरान वाला
महान् क्रांतिकारी आचार्यश्री विजयानन्द सूरि का जीवन अनेक प्रेरक एवं रोमांचक घटनाओं से भरा था। पंजाब की सिख परम्परा से जैन धर्म को मिली यह विभूति धर्म प्रभावक एवं युग प्रवर्तक संतों की श्रेणी में अग्रणीय थी। असाधारण दार्शनिक एवं सर्वदर्शन निष्णात आचार्य विजयानन्द सूरि (आत्माराम जी) का जन्म पंजाब के लहरा ग्राम (जिला फिरोजपुर) में 1835 में कलश (क्षत्रिय) कपूर गोत्रीय श्री गणेशचन्द के घर हुआ। बालक का नाम दित्ताराम रखा गया। पिता महाराज रणजीतसिंह की सेना में सैनिक थे। लहरा के जागीरदार अन्तरसिंह की इच्छा दित्ताराम को धर्म-गुरु के तौर पर दीक्षित करने की थी। परन्तु पिता गणेशचन्द राजी न हुए। अत: उन्हें जेल में डाल दिया गया। वे जेल से किसी तरह भाग निकले तो अंग्रेज कम्पनी सरकार से संघर्ष करना पड़ा। उन्हें पकड़कर आगरा की जेल में बन्दी रखा गया। वहीं एक दुर्घटना में गोली लग जाने से उनकी मृत्यु हुई।
अल्पवय में ही पिता का देहान्त हो जाने से दित्ताराम का लालनपालन समस्त पिता के परम मित्र ओसवाल भावड़ा नौलखा गोत्रीय जीरा