________________
जैन-विभूतियाँ आपकी सबसे बड़ी एवं अनोखी रचना थी अभिधान राजेन्द्र कोष। यह अभिधान राजेन्द्र कोश की विशेषता ही है कि इसमें आगम ग्रंथां के साथ ऋग्वेद, महाभारत, उपनिषद, योगदर्शन, चाणक्यनीति, पंचतंत्र, हितोपदेश आदि ग्रन्थों के साथ चरकसंहिता आदि प्राचीन वैद्यकीय ग्रंथों को भी स्थान देकर आपने इसे विश्वकोष का रूप/स्वरूप दिया। तब ही तो प्रो. सेल्वेन लेवी, सर जार्ज ग्रियर्सन, आर.एल. टर्नर, सिद्धेश्वर वर्मा, डॉ. सर्वपल्लि राधाकृष्णन, वाल्थर शुबिंग, पी.के. गौड़, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, के.ऐ. धरवैन्द्रेया, गुलाबराय एम.ए. जैसे भारतीय एवं पाश्चात्य जगत के विद्वानों ने इसका अध्ययन, मनन कर स्वयं को कृत्य-कृत्य करते हुए मुक्त मन से प्रशंसा की और इसे विश्वकोष की उपमा दी। इसे सारे विश्व में समान रूप से सम्मान प्राप्त हुआ। लगभग दस हजार पन्नों में संग्रहित इस कोष में 60 हजार पारिभाषिक शब्दों का 450 संस्कृत-प्राकृत भाषा ग्रंथों के श्लोकान्वय से सम्पूर्ण अर्थ के साथ विवेचन किया गया है। जब श्रीमद् की वय 60 वर्ष थी तब से शुरु हुआ यह कोष 80 वर्ष की आयु पर्यन्त लगातार अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर होता रहा। इस कोष ने आपको विश्वपूज्य की उपाधि से अलंकृत करवाया।
सन् 1906 में आपका पार्थिव शरीर पंच भूतों में विलीन हो गया!