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________________ जैन-विभूतियाँ 3 थी, अत: आपने अभिग्रह व्रत लेने की शुरुआत की। इस अभिग्रह के अंतर्गत आप कभी तीन-चार तो कभी आठ-आठ उपवास, कभी खड़ेखड़े तो कभी बिना पानी के, इस प्रकार इन अभिग्रहों को उपाश्रयों से लेकर, मांगी-तुंगी पहाड़, चामुण्डवन जैसे गहरे भयावह जंगलों तक ले गये। इन भयावह जंगलों में आप अपनी काया को तपाते हुए, अपने मनोबल की स्वयं परीक्षा लेते रहे। वहां रात को चित्तों, भालुओं का भी आक्रमण हुआ मगर आप अडिग रहे। नवकार मंत्र की साधना में ऐसे लगे रहे कि वे आपकी परिक्रमा करने एवं रुकने पर मजबूर हुए, जंगली जनवर आपके पास बैठने लगे। आपने इस प्रकार साधना से संचित अमूल्य आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग कभी चमत्कारों हेतु नहीं किया। आपने इन शक्तियों को प्राप्त करने के लिए जिनवाणी पर श्रद्धा रखने पर विशेष जोर दिया। जिन शासन में चमत्कारों को कोई स्थान नहीं-ऐसी ब्रह्म घोषणा कर आपने डोरे, धागे, ताविज द्वारा जन-मानस को लूला करने वाले लोगों को जबरदस्त फटकार लगाई। आपने अपने श्रमण जीवन में कई पाठशालाएँ स्थापित की। सैकड़ों जीर्ण बने मंदिरों का जिर्णोद्धार किया, मोहनखेड़ा जैसे नये तीर्थ की स्थापना की, जालोर दूर्ग के मंदिरों में पड़े शस्त्रों को हटवाया, पालनपुर, मांडवा, कोरंटाजी जैसे कई तीर्थों का पुनरोद्धार किया। आपने अपने जीवन काल में सैकड़ों मन्दिरों की प्राण प्रतिष्ठा कराई। आहारे में एक साथ 951 जिनबिम्बों की अपने करकमलों से स्थापना की एवं वहाँ अंजनशलाकाएँ भी स्थापित की। यह ऐसा समय था जब न वाहन थे, न रेलगाड़ियाँ, तो भी इस अजीब प्रसंग को अपने नयनों से देखने करीब 50 हजार श्रावक-श्राविकाएँ वहाँ उपस्थित हुए एवं उस प्रसंग को ऐसा अजर/अमर बना दिया कि न भूतो न भविष्ययति-आज तक ऐसा प्रसंग देखने/सुनने में नहीं आया। साहित्य की धुन आपको ऐसी सवार थी कि आपने अपने संयमित जीवन में छोटे-बड़े कुल 64 ग्रन्थ लिखे, 'जिनमें अधिकांश कृतियाँ अप्रकाशित एवं हस्तलिखित हैं। इनकी शोध एवं समीक्षा अभिप्सित है।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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