________________
जैन- विभूतियाँ
श्री नाहटा ने अपने जीवनकाल में हजारों शोधपूर्ण लेख व सैकड़ों ग्रन्थों का लेखन, सम्पादन व प्रकाशन किया। आपने अनेक शोधार्थियों को मार्गदर्शन देकर विभिन्न विषयों पर शोध करवाकर पी-एच.डी. आदि उपाधियों से गौरवान्वित करवाया। अनेक साधु-साध्वियों को आपने धार्मिक, साहित्यिक शिक्षा व लिपिज्ञान प्रदान किया व उनकी ज्ञानसाधना के मार्गदर्शक रहे । श्रद्धेय आचार्यों, साधु-साध्वियों व बड़े-बड़े विद्वानों की विभिन्न विषयों पर जिज्ञासाओं का समाधान कर आप उनके ज्ञान-यज्ञ में सहयोगी बने। 22 वर्षों तक जैन साहित्य की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका 'कुशल-निर्देश' का अनवरत रूप से सम्पादन किया ।
238
ब्राह्मी, खरोष्टी, देवनागरी आदि प्राचीन लिपियों एवं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्टी, राजस्थानी, गुजराती, बंगाली आदि भाषाओं में लेखन व उपरोक्त भाषाओं के साथ मराठी आदि भाषा के ग्रंथों का अनुवाद किया। पूर्ण सतर्कता हेतु लेखन, सम्पादन आदि कार्यों की प्रूफरीडिंग भी वे स्वयं ही करते थे। आप द्वारा लिखित शोधपूर्ण लेख व ग्रंथ अनेक न्यायालयों में साक्षी के रूप में स्वीकार किये गये। भारत के अलावा विश्व के कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में आपके शोधपूर्ण लेखों को सम्मिलित किया व संदर्भ के रूप में उल्लिखित किया। अपने चाचा श्री अभयराजजी नाहटा की स्मृति में बीकानेर का विश्वप्रसिद्ध अभय जैन ग्रन्थालय आपके व श्री अगरचंदजी नाहटा के जीवनभर के श्रम से संग्रहित 60,000 हस्तलिखित ग्रन्थों, लाखों मुद्रित पुस्तकों व अद्वितीय प्राचीन कलाकृतियों आदि से सुसज्जित व सुशोभित है। देश व मानव सेवा के लिए समर्पित श्री नाहटाजी ने जातपांत के भेदभाव से ऊपर उठ बचाव व राहत कार्यों में सक्रिय रूप से योगदान किया। भारत के विभिन्न क्षेत्रों की अग्रणी संस्थाओं में पद सहित व पद रहित अपनी सेवा देकर उनकी उन्नति व कायों में स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए । अनेक संस्थाओं के संस्थापक श्री नाहटा ने विभिन्न पदों पर रहकर संघ व समाज को नेतृत्व प्रदान किया । साहित्य व समाज की सेवाओं के लिए अनेकानेक संस्थाओं ने समय-समय पर आपका सम्मान कर गौरव की अनुभूति की।