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जैन - विभूतियाँ
14 सितम्बर, 1986 को उड़ीसा के राज्यपाल श्री विश्वम्भरनाथ पाण्डेय ने कलकत्ता में आयोजित आपके अभिनन्दन समारोह में अभिनन्दन
( 1986 के अभिनन्दन समारोह में श्री एवं श्रीमती नाहटा ) ग्रंथ समर्पित कर आपकी अभ्यर्थना की। 13 जनवरी, 1991 को हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा धनबाद अधिवेशन में आपको "साहित्य वाचस्पति'' उपाधि से सम्मानित किया गया। 30 जनवरी, 1999 को श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, माण्डवला द्वारा आपको "जिन शासन गौरव'' के विरुद से सम्मानित किया गया। 6 जून, 1999 के दिन श्री जैन कल्याण संघ, कलकत्ता ने आपको "समाज रत्न' विरुद से सम्मानित किया । सरस्वतीपुत्र नाहटाजी ने व्यापार में विशेष रुचि लेकर अपने पारिवारिक व्यापार को खूब फैलाया । भावी पीढ़ी को व्यापारिक ज्ञान व व्यापार की बारीकियों की जानकारी प्रदान की । यह एक संयोग ही है कि नाहटाजी श्री लक्ष्मीचन्दजी नाहटा के गोद गए ।
सभी क्षेत्रों में विशिष्टता व उच्चता लिए नाहटाजी की सादगी देख अनेक विद्वान व अग्रणी श्रावक आश्चर्यचकित हो उठते थे। सादगी की मूर्ति श्री नाहटाजी को छठे जैन साहित्य समारोह खम्भात में अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित किया गया था । मारवाड़ी पगड़ी व वेश-भूषा के कारण उपस्थित विद्वानों ने सोचा कि एक धनी सेठ को समारोह अध्यक्ष बनाया है जिसकी इस क्षेत्र में क्या पैठ होगी ? लेकिन तीन दिवसीय समारोह