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________________ 237 जैन-विभूतियाँ 56. श्री भँवरलाल नाहटा (1911-2002) जन्म : बीकानेर, 1911 पिताश्री : भेरुदान नाहटा दत्तक : लक्ष्मीचन्दजी नाहटा माताश्री : तीजा देवी दिवंगति : कोलकाता, 2002 जैन धर्म, दर्शन एवं साहित्य के मर्मज्ञ, लब्धिप्रतिष्ठित इतिहासकार, निष्काम कर्मयोगी, पुरातत्त्ववेत्ता, बहुभाषाविद्, आशुकवि एवं साहित्यवाचस्पति श्री भँवरलालजी नाहटा ने अपने जीवन प्रसंगों से श्रीमद् राजचन्द्र की उक्ति "आत्मा छु नित्य छू, देह थी भिन्न यूँ" की उक्ति को साकार कर दिखाया। श्री भंवरलालजी नाहटा का जन्म राजस्थान के बीकानेर शहर के प्रसिद्ध नाहटा परिवार में दानवीर सेठ श्री शंकरदानजी के पुत्र समाजसेवी श्रेष्ठिवर्य श्री भैरुंदानजी नाहटा की धर्मपत्नि श्रीमती तीजादेवी की रत्नकुक्षी से मिती आश्विन कृष्ण 12, सं. 1968 मंगलवार दिनांक 19 सितम्बर, 1911 को हुआ था। जैन पाठशाला से पाँचवीं कक्षा उत्तीर्ण कर आप चाचा सिद्धांतमहोदधि श्री अगरचंदजी नाहटा के साथ परम श्रद्धेय आचार्यश्री सुखसागरसूरिजी, आचार्यश्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के सान्निध्य व मार्गदर्शन में आप जैन साहित्य के पठन-पाठन, लेखन व शोधकार्यों में समर्पित भाव से जुट गए। 14 वर्ष की अवस्था में सेठ श्री रावतमलजी सुराणा की सुपुत्री जतनकंवर के साथ आपका विवाह आषाढ़ बदी 12 संवत् 1983 को हुआ। धर्मपरायण श्रीमती जतनदेवी जीवनपर्यन्त धार्मिक कार्यों, तपस्याओं में प्रत्यक्ष व अध्ययन, लेखन, शोध आदि में परोक्षरूप से पूर्ण सहयोग देकर नाहटाजी के जीवन लक्ष्य में सहायक रहीं।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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