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जैन-विभूतियाँ मात्र 50 वर्ष की उम्र में उनका देहान्त हुआ। राष्ट्रपति ने वि.सं. 2029 में उन्हें मरणोपरांत 'पद्मविभूषण' अलंकरण से विभूषित कया। किसी भी राष्ट्र के इतिहास में बड़े अन्तराल से ऐसे बिरले मनुष्य आते हैं, जो आगामी 200 वर्षों के विकास को आकार प्रदान कर जाते हैं। नभ भौतिकी तथा परमाणु ऊर्जा के शान्तिपरक उपयोग में डॉ. साराभाई का अवदान इसी कोटि का है। एक बार महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर सं. 1977 में अहदाबाद पधारे थे, तब बालक विक्रम साराभाई घुटनों के बल चलने लगे थे। महाकवि ने उन्हें गोद में उठाकर माता सरला देवी से कहा था- 'बहन! तुम बड़ी भाग्यशाली हो। तुम्हारा यह पुत्र बड़ा होकर बहुत नाम कमाएगा।' महाकवि की वह भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई।
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