________________
जैन-विभूतियाँ
231 चित्रों, मूर्तियों, सिक्कों, सीलों का भी अलभ्य संकलन किया। आज उनका श्री अभय जैन ग्रथालय और श्री शंकरदान नाहटा कला भवन विश्व के प्रथम श्रेणी के ग्रंथालयों में है जहाँ तीन हजार दुष्प्राप्य चित्र, सैकड़ों सिक्के, हजारों मूर्तियाँ, सत्तर हजार दुर्लभ हस्तलिखित एवं पचास हजार मुद्रित ग्रंथ संकलित हैं। इन अमूल्य दस्तावेजों में प्राकृत अपभ्रंश राजस्थानी, सिंधी, हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, कन्नड़, कश्मीरी, अरबी, फारसी, बंगला, उड़िया आदि भाषाओं के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं।
आपने अनेक पत्रिकाओं का सम्पादन किया, यथा-राजस्थानी, विश्वम्भरा, मरू भारती, मरूश्री, वरदा, परम्परा, अन्वेषणा, वैचारिकी आदि। अनेक स्मारक ग्रंथों का सम्पादन आपने किया है, जिनमें मुख्य हैं-राजेन्द्र सूरि स्मारक ग्रंथ। आपके पाँच हजार से अधिक शोध प्रबंध विभिन्न भारतीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। संवत् 1984 से लगातार 55 वर्षों की श्रम साध्य यात्रा में आपने साठ से अधिक महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रंथों का सम्पादन किया है, जिनमें मुख्य हैं-युग प्रधान श्री जिनचन्द्र सूरि, बीकानेर जैन लेख संग्रह, ज्ञान सार ग्रंथावली, रत्नपरीक्षा, राजस्थान में हस्तलिखित ग्रंथों की खोज (4 भाग), जसवंत उद्योत, जिनराज सूरि कृत कुसुमांजलि, जिनहर्ष ग्रंथावली, दम्पत्ति विनोद, सभा श्रृंगार, प्राचीन कवियों की रूप परम्परा, धर्म वर्द्धन ग्रंथावली, सीताराम चौपाई आदि। आपने बिना पढ़े-लिखे होकर भी एक सौ से अधिक पी.एच-डी. के शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया है। आप द्वारा रचित एवं सम्पपीतद ग्रंथों में मूलत: पुरातत्त्व, कला, इतिहास, लोक संस्कृति, जैन धर्म एवं दर्शन से संबंधित ग्रंथ हैं। आपके भ्रातृ-पुत्र श्री भंवरलालजी नाहटा सरस्वती उपासना की इस मशाल को थाम रखने में सहयोगी हुए हैं। उनके श्री अगरचन्दजी नाहटा के साथ सह-सम्पादित ग्रंथों की भी लम्बी सूचि है, जिनमें उल्लेखनीय है-युग प्रधान जिनचन्द्रसूरि, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, मणिधारी जिनचन्द्र सूरि, दादा जिनदत्त सूरि, कयामखान रासो, विशालदेव रासो, प्राचीन गुर्जर रास संचय, खरत्तर गच्छ प्रतिबोधित गोत्र एवं जातियाँ आदि।