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________________ 230 जैन-विभूतियाँ __54. श्री अगरचन्द नाहटा (1911-1983) जन्म : बीकानेर, 1911 पिताश्री : शंकरदान नाहटा अवदान : प्राचीन पुरातात्त्विक एवं धार्मिक जैन पांडुलिपियों एवं ग्रंथों का संग्रह दिवंगति : 1983 जैन शासन के साधनाशील, अन्वेषी एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी ओसवाल वंश एवं नाहटा गोत्र के सरस्वती समुपासक श्री अगरचन्दजी नाहटा का जन्म बीकानेर में संवत् 1967 (सन् 1911) चेत्र कृष्णा चतुर्थी को हुआ। स्कूली शिक्षा नहीं के बराबर हुई। जल्द ही कलकत्ते की गद्दी में व्यापार सीखने लगे। उनका परिवार कलकत्ता सिलचर एवं अन्य स्थानों में प्रस्थापित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का मालिक था। संवत् 1984 में श्री जिन कृपाचन्द सूरि की प्रेरणा से आप धार्मिक-साहित्योन्मुखी हुए एवं प्राचीन लिपि और ग्रंथों के अनुशीलन में प्रविष्ट हुए। धीरे-धीरे ताड़पत्र उत्कीर्ण ग्रंथों का संग्रह करने लगे। हस्तलिखित ग्रंथों की खोज में आप अनेक ज्ञान भंडारों एवं ग्रंथागारों का चक्कर लगाने लगे एवं घंटों वहाँ निमग्न रहने लगे। इसके लिए आपको कहाँ नहीं जाना पड़ा-एक जुनून सर पर सवार था-श्मशानों, ध्वस्त खंडहरों में भूखे-प्यासे, चिलचिलाती धूप में मीलों पैदल सफर कर पहुंचते और मंजिल पर मनचिंती सामग्री पाकर उल्लसित हो उठते। उन्होंने बड़े अध्यवसाय से वृहद् खरतर गच्छ, बड़ा उपासरा, बीकानेर के अंतर्गत नौ ज्ञान भंडारों की 10000 एवं श्री जिनचन्द सूरि ज्ञान भंडार के 60000 प्राचीन ग्रंथों की केटेलोग (ग्रंथसूची) बनाकर प्रकाशित की। पचासों ग्रंथों की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावनाएँ लिखी। उनके इस कार्य में सहयोगी बने भ्रातृपुत्र श्री भंवरलालजी नाहटा। कठिन परिश्रम से ग्रंथों का अमूल्य भंडार आपने संग्रहित किया। ग्रंथों के अलावा प्राचीन
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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