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जैन-विभूतियाँ
229 के दृश्य-सौन्दर्य से प्रेरित हो शिल्प सृजन किया। इस चित्रमाला में उन्होंने अत्यंत सूक्ष्म भाव से यथावत रंगों के प्रयोग द्वारा प्रकृति के इन्द्रिय लब्ध रूप को उद्घाटित किया। दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर देने वाले इन चित्रों को सदरे रियासत डॉ. कर्णसिंह ने अमर महल (जम्म) की कला दीर्घा के लिए माँग लिया और उदार मना सरल हृदय इन्द्र बाबू ने विश्व बाजार में लाखों की कीमत वाले ये चित्र उन्हें प्रदान कर दिए।
सेतोस्लाव रोरिक एवं देविका रानी के साथ श्री एवं श्रीमती इन्द्र दूगड़
समाज ने उनकी अभ्यर्थनार्थ एक समिति गठित की किन्तु संवत् 2046 में इन्द्र बाबू के आकस्मिक निधन से कला जगत निस्तब्ध रह
गया।