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जैन-विभूतियाँ
225 53. श्री इन्द्रचन्द हीराचन्द दूगड़ (1918-1989)
जन्म
: 1918
पिताश्री
: हीराचन्द दूगड़
दिवंगति
: 1989
क्षात्र तेज को चित्र फलक पर रूपायित करने वाले लब्ध प्रतिष्ठित चित्रकार श्री इन्द्र दूगड़ ने ओसवाल समाज को एक अछूते एवं अभिनव क्षेत्र में महिमा मंडित किया। आदि काल से ओसवाल श्रेष्ठियों ने कला व संस्कृति के पुजारियों को भरपूर आश्रय दिया था किन्तु स्वयं तूलिका, रेखाओं और रंगों से अरूप की अभिव्यंजना एवं अभ्यर्थना को समर्पित हो जाने वाले इन्द्र बाबू के समान कला साधक गिने चुने ही हुए हैं।
मुर्शिदाबाद जिला का जियागंज अंचल जगत सेठों के समय से सुविख्यात रहा। श्री इन्द्र दूगड़ के पूर्वज दो-ढाई सौ वर्ष पूर्व राजलदेसर (राजस्थान) से आकर यहाँ बस गए। पिताश्री हीराचन्द्र दूगड़ (जन्म संवत् 1955) पुश्तैनी व्यवसाय छोड़कर कला की ओर आकर्षित हुए। कलकत्ता आर्ट स्कूल में उत्तीर्ण होकर शांति निकेतन चले गए। वहाँ आचार्य नन्दलाल बसु के निर्देशन में चार-पाँच साल कला-भवन में प्रशिक्षण ग्रहण किया। तभी पारिवारिक समस्याओं से घिरे हीराचन्दजी को जियागंज लौटना पड़ा। आते ही माँ का देहान्त हो गया। चन्द महीनों बाद ही तीन छोटे बच्चों को छोड़कर पत्नि चल बसी। इन मार्मिक आघातों से वे तिलमिला उठे। रोजगार के लिए तूलिका और रंग बक्शे में बन्द कर देने पड़े। बीस वर्षों तक उन्होंने तूलिका को हाथ नहीं लगाया। परन्तु उनके जीवन के अंतिम दस वर्ष एक कलात्मक चेतना के ज्वार से उद्वेलित रहे। इस