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________________ 217 जैन-विभूतियाँ 51. श्री भंवरमल सिंघी (1914-1984) नये समाज के स्वप्न द्रष्टा, कवि चिंतक, स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक एवं धार्मिक क्रांतियों के प्रणेता एवं कलाकार श्री भंवरमल सिंघी का बहुआयामी संघर्षशील व्यक्तित्व जैनों और ओसवालो के लिए ही नहीं, समस्त भारतीय मनीषा के लिए प्रेरणास्रोत है। संवत 1971 में जोधपुर के निकट बडू. ग्राम की एक झोपड़ी में उनका जन्म हुआ। सिंघी जी के दादा पेशे से मुंशी थे। उनके कुल 24 संतानें हुई। उन्नीस का निधन हो गया। सिंघी जी के पिता बीसवीं सन्तान थे। अत: उन्हें प्यार तो मिला पर अभाव भी। संवत् 1976 में फैली प्लेग की महामारी में दादा-दादी का देहांत हो गया। अनेक अन्य हादसों में से गुजरते हुए सिंघी जी बड़े हुए। मेधावी तो वे थे, मिडिल की परीक्षा में सर्वोच्च अंक मिले किन्तु घर की हालत पतली थी। पहले बिसात खाने की और फिर पान की दुकान पर बैठना पड़ा। पर पढ़ते रहे। हाई स्कूल की परीक्षा में जयपुर में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए। उन्हें ग्लासी गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। पिता की जब अमानत में खयानत के मुकदमे में गिरफ्तार होने की नौबत आई तो माँ के गहने और अपना गोल्ड मेडल बेचकर साहूकार की भरपाई की। सन् 1934 में अजमेर में द्वितीय ओसवाल महासम्मेलन हुआ। सिंघीजी ने इस सम्मेलन से सामाजिक कार्यों में हिस्सेदारी शुरू की। तभी उनका प्रथम विवाह हुआ परन्तु मानसिक रूप से वे इसे कभी स्वीकार नहीं कर सके। हिन्दी के प्रति प्रेम और स्वराज्य-आन्दोलन का बीज वपन तब तक हो चुका था। उन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विशारद एवं तत्पश्चात् साहित्यरत्न परीक्षाएं उत्तीर्ण की। तभी उनका सम्पर्क श्री कंवरलाल बापना से हुआ जो प्रतिभावान वकील थे एवं आजादी के बाद राजस्थान उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश बने। उनके सहयोग से सिंघीजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ने चले आए। यहाँ उनकी भेंट हिन्दी के प्रसिद्ध
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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