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________________ जैन - विभूतियाँ उपन्यासकार प्रेमचन्द से हुई जिनकी प्रेरणा से सिंघीजी ने गद्य गीत लिखने शुरु किये जो 'हंस' में प्रकाशित हुए । प्रेमचन्द की संवेदना एवं उदात्त मूल्यों के प्रति आस्था ने सिंघीजी के जीवन की दिशा निर्धारित कर दी। बनारस से स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण कर आप कोलकाता आ गए। यहां आकर उनकी प्रतिभा चमक उठी- उनका क्षेत्र विस्तृत हो गया। वे अनेक सामाजिक नेताओं और संस्थाओं (विशेषत: मारवाड़ी सम्मेलन) से जुड़े। संवत् 1994 में उनके गद्यकाव्यों का संकलन 'वेदना' प्रकाशित हुई। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी ने इस काव्य ग्रंथ की भूमिका लिखी थी । कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने हिन्दी साहित्य में इस नये प्राण संचार एवं भावक्षेत्र के सीमा प्रसार की प्रशंसा की। डॉ. रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ "हिन्दी साहित्य का इतिहास' में सिंघीजी को हिन्दी का प्रथम गद्य गीतकार माना है । 218 इसी दरम्यान सिंघी जी ने 'ओसवाल नवयुवक' पत्र का सम्पादन भार सम्भाला। वे समाज को रूढ़ियों एवं अंध धार्मिक साम्प्रदायिकता की कारागार से बाहर लाना चाहते थे । होम करते हाथ जल गया । ज्यों ही पत्रिका में भग्न हृदय का 'साधुत्व' शीर्षक लेख छपा, धर्म एवं समाज के तथाकथित ठेकेदार बौखला गए एवं सिंघी जी को स्तीफा देना पड़ा। संवत् 1997 में उन्होंने तरूण संघ की स्थापना की एवं तरूण ओसवाल (जो बाद में 'तरुण जैन' और फिर 'तरूण' नाम से निकला) पत्र निकालना शुरु. किया। अपनी ओजस्वी पत्रकारिता से उन्होंने समाज को नई दिशा दी। इसी वर्ष राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्घा की एक बैठक में वे महात्मा गांधी से मिले । स्वाधीनता आन्दोलन तीव्रतर हो रहा था । संवत् 1999 में गांधीजी जी ने 'करो या मरो' एवं 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया। सिंघीजी तन-मन से आन्दोलन में कूद पड़े। इस बीच उनकी प्रथम पत्नि असमय कालकवलित हो चुकी थी । आन्दोलन के दरम्यान वे अनेक क्रांतिकारियों से मिले एवं भूमिगत राष्ट्रीय नेताओं से उनका घनिष्ट सम्पर्क रहा। जब नागपुर और मुम्बई के बीच रेलवे ट्रेनों को डायनामाइट से उड़ाने की योजना बनी तो सिंघीजी उसके सूत्रधार नियुक्त हुए। वे डायनामाइट प्राप्त करने में भी समर्थ हुए परन्तु तभी पुलिस को इसकी भनक मिल गई, तलाशी हुई और वे गिरफ्तार कर लिए गये। प्रेसिडेंसी जेल में उन्हें वर्षों रखा गया। पेट में दर्द के -
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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