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जैन-विभूतियों श्री कोठारी सन् 1963 में भारतीय विज्ञान काँग्रेस के स्वर्ण जयंती समारोह के अध्यक्ष मनोनीत हुए। भारत सरकार ने सन् 1964 में आपको भारतीय शैक्षणिक कमीशन का चेयरमैन नियुक्त किया। सन् 1948 में डॉ. राधाकृष्णन एवं सन् 1953 में प्रो. मुदालियर की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग शिक्षण के क्षेत्र में एकरूपता लाने में असमर्थ रहे थे। अत: भारत सरकार ने यह जिम्मेदारी कोठारी आयोग को सौंपी। गहन अध्ययन के बाद डॉ. कोठारी ने सन् 1966 में डेढ़ हजार पृष्ठों की जो रिपोर्ट प्रस्तुत की उसमें यथार्थवादी एवं व्यवहारिक दृष्टिकोण से विद्यालयों के पाठ्यक्रम, छात्रों की प्रवेश-उम्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के शिक्षण आदि के बारे में अनेक उपयोगी सुझाव दिए जिससे सम्पूर्ण देश की भावात्मक एकता बनी रहे। सन् 1973 में आप भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान एकेडमी के सभापति चुने गए। आपने अन्य अनेक सरकारी निकायों की सदस्यता से देश को लाभान्वित किया। आप बड़े अध्यात्म प्रेमी थे। अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता कर आपने समाज को नई दिशा दी। सन् 1962 में भारत सरकार ने आपको 'पद्म-भूषण' की उपाधि से सम्मानित किया एवं सन् 1973 में 'पद्मविभूषण' की उपाधि से विभूषित किया।
उनकी राष्ट्रीय उपलब्धियों से अभिभूत होकर 'नेशनल फेडरेशन ऑफ यूनेस्को एसोसिएशन' ने उन्हें 'यूनेस्को' एवार्ड से अलंकृत किया। सन् 1992 में जयपुर में आप दिवंगत हुए। आप जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चांसलर एवं अहिंसा इन्टरनेशनल के संरक्षक थे।