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________________ 215 जैन-विभूतियाँ 50. डॉ. दौलतसिंह कोठारी (1905-1992) जन्म : उदयपुर, 1905 पद/उपाधि : पद्मभूषण (1962), पद्मविभूषण (1973) दिवंगति : जयपुर, 1992 भारत सरकार में अति उच्च पद पर आसीन होने एवं देश व विदेशों में अपार ख्याति अर्जित करने पर भी अत्यंत मृदुल स्वभाव एवं निरभिमानी व्यक्तित्व के धनी डॉ. दौलतसिंह कोठारी की जीवनगाथा समस्त जैन समाज के लिए प्रेरणास्पद है। विश्व के महानतम वैज्ञानिको में गिने जाने वाले डॉ. दौलतसिंह कोठारी का जन्म सन् 1905 में उदयपुर में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा उदयपुर और इन्दौर में पूर्ण करने के बाद आपने इलाहाबाद युनिवर्सिटी से सन् 1928 में डॉ. मेघनाथ साहा के निर्देशन में भौतिकी में एम.एस.सी. (प्रथम श्रेणी में) पास की। तत्पश्चात् यू.पी. सरकार की स्कॉलरशिप पर आपने कैम्ब्रिज (इंग्लैण्ड) युनिवर्सिटी में विश्व के चोटी के वैज्ञानिकों रदरफोर्ड, फाउलर आदि के साथ अनुसंधान में रत रहकर नभ भौतिकी का अध्ययन किया। सन् 1933 में वे पी-एच.डी. से सम्मानित किये गये। आपने दिल्ली युनिवर्सिटी में सन् 1934 से 1961 तक अध्यापन किया। वे भौतिकी विभाग के सर्वोच्च अधिकारी थे। कलकत्ते में सन् 1940 में हुई विज्ञान कॉन्फ्रेंस के सभापति सर जेम्स जीन ने आपके कार्य की बहुत सराहना की। सन् 1948 में उन्हें भारत सरकार ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास की जिम्मेदारी सौंपी। वे सन् 1948 से 1961 तक भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार रहे। सं. 1961 में उन्हें युनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन का चेयरमैन बनाया गया-तब भी वे दिल्ली युनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर बने रहे। उन्होंने नाभिकीय सितारों पर अनेक महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किये जिससे उन्हें ' अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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