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जैन-विभूतियाँ हुईं। ऑल इण्डिया रेडियो, लखनऊ पर उनकी अन्तिम वार्ता 'नदिया एक, घाट बहुतेरे-जैन धर्म' 24 जनवरी, 1988 को प्रसारित हुई थी। उनकी संगीतबद्ध रचना 'जय महावीर नमो' न केवल भारत में आकाशवाणी से प्रसारित हुई, अपितु इसका टेप विदेशों में भी सुना जाता है।
भगवान महावीर के निर्वाण की 2500वीं वर्षगांठ पर उत्तरप्रदेश शासन के तत्त्वावधान में आयोजित विभिन्न समारोहों में डॉक्टर साहब की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। उनके प्रधान सम्पादकत्व में 'भगवान महावीर स्मृति ग्रन्थ' का प्रकाशन हुआ, जिसमें उत्तरप्रदेश में जैन धर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर विभिन्न पक्षों को सन्दर्भित और समाहित करते हुए प्रामाणिक सामग्री का संकलन किया गया था। वह एक मौलिक शोध-संदर्भ ग्रन्थ है, जिसकी उपयोगिता शोधार्थियों के लिए अनवरत बनी रहेगी।
सन् 1976 में गठित तीर्थंकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति, उत्तरप्रदेश के डॉक्टर साहब संस्थापक सदस्य थे और अपनी मृत्युपर्यन्त वह उसके शोध-पुस्तकालय एवं शोध-प्रवृत्तियों के मानद निदेशक रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 'जैन कला एवं स्थापत्य' ग्रन्थ के तीनों खण्डों के सम्पादन से वह सक्रिय रूप से सम्बद्ध रहे और भारतीय ज्ञानपीठ की मूर्तिदेवी ग्रन्थमाला के वह मानद सम्पादक भी रहे।
जुलाई 1958 में डॉक्टर साहब ने भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ मथुरा से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र 'जैन सन्देश' के 'शोधांक' का शुभारम्भ इस दृष्टि से किया था कि जैन विद्या से सम्बन्धित शोध के प्रति लोगों की अभिरुचि जागृत हो। अक्टूबर, 1983 तक उसके 51 अंक प्रकाशित हुए जो शोधार्थियों के लिए बहुत महत्त्व रखते हैं।
- पुन: फरवरी, 1986 में तीर्थंकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति, उ.प्र. के तत्त्वावधान में एक चातुर्मासिक शोध-पत्रिका 'शोधादर्श' नाम से लखनऊ से प्रारम्भ की, जिसके 6 अंक उनके जीवनकाल में प्रकाशित हुए थे। यह पत्रिका अब भी प्रकाशित हो रही है एवं अपनी निष्पक्ष सत्योन्मुखी सम्मतियों के लिए प्रसिद्ध है।