________________
जैन-विभूतियाँ
211 प्रथम खण्ड उनके महाप्रयाण के उपरान्त जुलाई, 1988 में 'जैन ज्योति : ऐतिहासिक व्यक्तिकोश प्रथम खण्ड (अ-अं)' लखनऊ से प्रकाशित हुआ था।
डॉक्टर साहब की अन्य उल्लेखनीय प्रकाशित कृतियाँ हैं-सन् 1955 में उ.प्रा. शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित 'हस्तिनापुर', 1965 में अलीगंज (एटा) से प्रकाशित 'Jainism and Buddhism', 1965 में आरा से प्रकाशित 'जैनों का असाम्प्रदायिक साहित्य और कला, 1970 में लखनऊ से प्रकाशित 'रुहेलखण्ड-कुमायुं और जैन धर्म', 1974 में दिल्ली से प्रकाशित 'तीर्थंकरों का सर्वोदय मार्ग', 1976 में लखनऊ से प्रकाशित 'उत्तरप्रदेश और जैन धर्म', 1979 में लखनऊ से प्रकाशित 'आदितीर्थ अयोध्या', 1983 में लखनऊ से प्रकाशित 'Way to Health and Happiness : Vegetarianism' y 'Bhagawan Mahavira : Life, Times and Teachings' तथा 1985 में दिल्ली से प्रकाशित 'समाजोन्नायक क्रान्तिकारी युगपुरुष ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद' ।
विद्याव्यसनी डॉक्टर साहब ने ज्ञानार्जन और लेखन को व्यवसाय नहीं बनाया। उसके प्रति उनके मन में मात्र समर्पण भाव रहा। शासकीय सेवा से अवकाश ग्रहण करने के उपरान्त उन्होंने अपना प्राय: सम्पूर्ण समय और शक्ति बौद्धिक कार्यकलापों और समाज सेवा को अर्पित कर दी थी। अपने अपरिमित ज्ञान के कारण वह अपनी मित्र-मण्डली और सहयोगियों के मध्य एक चलता-फिरता ज्ञानकोश समझे जाते थे। अपना मौलिक लेखन तो वह करते ही थे, अन्य जनों को भी सदैव लेखन हेतु प्रोत्साहित, प्रेरित करते थे। अनेक मनीषियों की कृतियों को उन्होंने अपने विद्वतापूर्ण प्राक्कथन एवं भूमिका आदि से अलंकृत किया था। विभिन्न विश्वविद्यालयों, विशेषकर लखनऊ विश्वविद्यालय में जैन विद्या से सम्बन्धित किसी भी विषय पर डॉक्टरेट करने वाले शोधछात्र प्राय: उनके पास मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु आते थे और वे अपने बहुमूल्य सुझावों द्वारा उनकी सहायता करने में उदार रहते थे। डॉक्टर साहब न केवल एक बहुआयामी लेखक थे, अपितु एक कुशल वक्ता भी थे। आकाशवाणी और दूरदर्शन दोनों ही पर उनकी वार्ताएँ अनेक बार प्रसारित