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जैन-विभूतियाँ एवं जैन पत्र-पत्रिकाओं की एक विवरणिका संकलित की थी। उक्त विवरणिका में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी की 2052, मराठी की 48, गुजराती की 70, बंगला की 52, उर्दू की 168 तथा अंग्रेजी एवं अन्य यूरोपीय भाषाओं की 290 कृतियों का समावेश है। साथ ही जैन धर्मानुयायियों द्वारा की गई साहित्य सेवा, उक्त साहित्य के प्रकाशन के इतिहास, जैन पत्रकारिता के इतिहास, जैन पुराभिलेखों, प्रशस्तियों, स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला आदि पर प्रकाश डालने वाली डॉक्टर साहब की 89 पृष्ठ की सारगर्भित भूमिका है। यह पुस्तक सन् 1958 में जैन मित्रमण्डल, दिल्ली से प्रकाशित हुई थी और तत्समय अपनी साहित्यिक निधि का लेखा-जोखा लगाने में उपयोगी इस कृति का विद्वज्जगत् द्वारा प्रभूत समादर हुआ था।
साधारण मनुष्य की भी एक अटूट परम्परा होती है और वह पर्दे के पीछे रहकर भी इतिहास को गति देती रहती है। इस असाधारणता का मूल्यांकन करने वाली, पारम्परिक लीक से हटकर रची गई उनकी कृति है-'प्रमुख इतिहास जैन पुरुष और महिलाएँ'। साहू शान्ति प्रसाद जैन की प्रेरणा से प्रणीत और फरवरी, 1975 में प्रथमत: प्रकाशित इस पुस्तक में विगत ढाई हजार वर्ष में हुए प्रमुख पुरुषों और महिलाओं का परिचय विभिन्न स्रोतों से एकत्र करके एक ऐसा स्मृति-ग्रंथ प्रस्तुत किया है, जिसे पढ़कर हम अपने आपको गौरवान्वित महसूस करेंगे। सन् 2000 में भारतीय ज्ञानपीठ ने इसकी द्वितीय आवृत्ति निकाली है।
इतिहास में एक ही नाम के अनेक विशिष्ट व्यक्ति हुए हैं और नाम साम्य के आधार पर कई व्यक्तियों को एक ही मान लेने की भ्रान्ति प्राय: हो जाती है। इससे ऐतिहासिक घटनाओं और ऐतिहासिक व्यक्तियों के व्यक्तित्व का समाकलन भ्रमपूर्ण हो जाता है। इतिहास के स्रोतों के सम्यक् अध्ययन के लिए प्रतिबद्ध डॉक्टर साहब ने अपनी पचास वर्ष की साधना से जैन आचार्यों, प्रभावक सन्तों, साध्वी आर्यिकाओं, साहित्यकारों, कलाकारों, धर्म एवं संस्कृति के पोषक राजपुरुषों और अन्य गणमान्य पुरुषों एवं महिलाओं का संक्षिप्त प्रामाणिक परिचय ससंदर्भ संकलित कर अकारादि क्रम से एक कोश तैयार किया था। उसका