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जैन-विभूतियाँ
209 प्रो. दलसुख मालवणिया की प्रेरणा से प्रणीत इस कृति का प्रथमत: प्रकाशन सन् 1951 में जैन कल्चरल रिसर्च सोसायटी, बनारस द्वारा हुआ था। तदनन्तर 1988 में पी.सी. रिसर्च इन्स्टीट्यूट, वाराणसी ने उसकी द्वितीय आवृत्ति निकाली और 1979 में अहमदाबाद के श्री हेमंत जे. शाह ने उसका गुजराती रुपान्तर 'जैन धर्म साहुथी वधु प्राचीन अनेजुवन्त धर्म' नाम से प्रकाशित किया।
"अपने पूर्व पुरुषों के गुणों एवं कार्यकलापों को जानकर मनुष्य स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता है, उनसे प्रेरणा और स्फूर्ति प्राप्त करता है और सबक भी लेता है। उनके द्वारा की गई गल्तियों को दोहराने से बचने का प्रयत्न करता है"-इतिहास की इस उपयोगिता में विश्वास रखने वाले इतिहास-मनीषी डॉक्टर साहब ने विश्व इतिहास के परिप्रेक्ष्य में भारत के इतिहास का अध्ययन-मनन कर 'भारतीय इतिहास : एक दृष्टि' ग्रंथ का प्रणयन किया। उसमें प्राग् ऐतिहासिक काल से लेकर सन् 1947 में स्वतन्त्रता प्राप्ति पर्यन्त दक्षिण भारत सहित समग्र देश का एक सुव्यवस्थित तथ्यात्मक निष्पक्ष इतिहास प्रस्तुत किया। यह पहला इतिहास ग्रंथ है, जिसमें अन्य स्रोतों के साथ-साथ जैन सामग्रीसाहित्य, अभिलेख, पुरातत्त्व आदि का भी सन्तुलित रूप से उपयोग किया गया। सन् 1961 में प्रथमत: प्रकाशित इस इतिहास-ग्रन्थ की लोकप्रियता के कारण सन् 1999 में भारतीय ज्ञानपीठ ने इसका तीसरा संस्करण प्रकाशित किया।
___ अंग्रेजी भाषी सामान्य पाठकों को जैन धर्म और संस्कृति से परिचित कराने वाली, प्रो. जी.आर. जैन की प्रेरणा से प्रणीत उनकी कृति 'Religion and Culture of the Jains' प्रथमत: सन् 1975 में प्रकाशित हुई थी। यह देश-विदेश में इतनी लोकप्रिय हुई कि सन् 1999 में भारतीय ज्ञानपीठ ने इसका चौथा संस्करण प्रकाशित किया।
मुद्रणकला के इतिहास की पृष्ठभूमि में डॉ. माताप्रसाद गुप्त की सन् 1945 में प्रकाशित पुस्तक 'हिन्दी पुस्तक साहित्य' से प्रेरणा लेकर साहित्यानुरागी डॉक्टर साहब ने सन् 1946-47 में प्रकाशित जैन ..हित्य