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जैन-विभूतियाँ 48. डॉ. शार्लोटे क्राउजे (1895-1980)
शिक्षा
जन्म
: सलोरे (जर्मनी) 1895 पिताश्री : हरमन क्राउजे
: लिपजिग युनिवर्सिटी से
Ph.D., 1920 जैन श्राविका दीक्षा : 1925 केथोलिक धर्म दीक्षा : ग्वालियर, 1962 दिवंगति : ग्वालियर, 1980
सन् 1925 में जैन दर्शन एवं साहित्य से प्रभावित होकर एक जर्मन महिला डॉ. शार्लोटे क्राउजे भारत आईं। उनका जन्म जर्मनी के सलोरे शहर में सन् 1895 में हुआ। उनके पिता श्री हरमन क्राउजे व्यापारी थे। तरुणी शार्लोटे क्राउजे ने लीपजिग युनिवर्सिटी के विश्वविख्यात आचार्य एवं भारत विद्याविद (Indologist) डॉ. जोहीनीज हर्टेले के निर्देशन में सन् 1920 में "नंसिकेत री कथा''प्राचीन जैन उपाख्यान पर शोध कर पी-एच.डी. की डिग्री हासिल की। जैन दर्शन के सांगोपांग अध्ययनार्थ उन्होंने आचार्य विजयधर्मसरि से सम्पर्क साधा एवं इसी हेतु वे बम्बई आईं। सन् 1925 में भारत पदार्पण के साथ ही वे प्राचीन जैन वाङ्मय की शोध को ऐसी समर्पित हुई कि उम्र भर न तो उन्होंने विवाह किया, न ही जर्मनी लौटी। यहीं रहकर उन्होंने अनेक प्राचीन जैन ग्रंथों का सम्पादन किया। उन्होंने जैन शास्त्रों एवं साहित्य पर अनेक टीकाएँ और शोध प्रबंध लिखे जो जर्मन, अंग्रेजी, गुजराती एवं हिन्दी भाषाओं में सन् 1922 से 1955 तक प्रकाशित होते रहे।
उनके शोध-प्रबंधों को विश्व के मूर्धन्य प्राच्य भाषाविदों यथा : हेमवर्ग के डॉ. लुटविग एल्स डोर्फ, बोन के डॉ. हरमन जेकोबी अमरीका के डॉ. फ्रेंकलिन एडगर्दन, जर्मनी के डॉ. वाल्टर शुब्रिग एवं नार्वे, स्वीडन, रूस, चेकोस्लावाकिया, फ्रांस, इंग्लैण्ड के विद्वत् समाज ने एक स्वर से