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जैन - विभूतियाँ
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को लाकर विराजमान किया गया। बाराबंकी की मूर्ति वापस कर दी गई। एक मूर्ति श्वेत पाषाण की पद्मासन, सुन्दर आकृति, करीब 800 वर्ष पूर्व की प्रतिष्ठित है। वह चन्द्रप्रभु भगवान की है। दूसरी मूर्ति अत्यन्त प्राचीन है । यह पीतल व अष्टधातु की पार्श्वनाथ की है। ऐसी अर्द्धपद्मासन मूर्तियाँ उत्तर भारत में देखने में नहीं आती हैं। यह दोनों मूर्तियाँ चौक के मन्दिर से 12 जनवरी, 1927 को ब्रह्मचारी जी के साथ जाकर बहुत से लोग अजिताश्रम लाये और मंत्र का जप करके चैत्यालय में विराजमान करके मज्जन, अभिषेक, पूजन किया गया।
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अजिताश्रम चैत्यालय को स्थापित हुए अब 65 वर्ष हो गये हैं। अमीनाबाद गणेशगंज चारबाग के सब जैन भाई यहाँ दर्शन करने आते हैं। दशलक्षणी और निर्वाण चौदश को तो इतनी भीड़ होती है कि तिल भर की भी जगह नहीं बचती ।
1900 में दिगम्बर जैन महासभा और भारत जैन महामण्डल का सम्मिलित मुख पत्र 'जैन गजट' था। आरा निवासी दानवीर श्रीदेव कुमार जी सम्पादक और बाबू राजेन्द्र किशोर जी प्रकाशक थे । यह पाक्षिक पत्र इलाहाबाद में छपाया जाता था । हिन्दी के साथ 4 पृष्ठ अंग्रेजी में होते थे। सन् 1904 में जैन गजट अंग्रेजी में इलाहाबाद से जुगमन्दर लाल जी के सम्पादकत्व में प्रकाशित होने लगा और केवल भारत जैन महामण्डल का मुख पत्र हो गया । 1912 में श्री जुगमन्दरलालजी जैनी 'जैन गजट' अजित प्रसाद जी को सौंप कर लन्दन चले गये। 1918 से जैन गजट श्री मल्लिनाथ के सम्पादकत्व में 1933 तक मद्रास से निकलता रहा। 1934 में फिर उसके सम्पादन का भार अजित प्रसाद जी ने ग्रहण कर लिया ।
जैन गजट ने समाज की 47 वर्ष सेवा की। परन्तु धीरे-धीरे ग्राहकों की संख्या कम होती गई। निराश होकर 1950 के अन्त में अजित प्रसाद जी ने जैन गजट बन्द कर दिया ।
जैन गजट को बन्द करने के ठीक नौ महीने बाद सितम्बर 17, 1951 की अर्धरात्रि को 77 वर्ष की आयु में अजित प्रसाद जी का पार्थिव शरीर पंचभूत में लीन हो गया ।