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जैन-विभूतियाँ प्रसाद जी को विश्वविद्यालय से त्याग-पत्र देना पड़ा और एक ही वर्ष में काशीवास का स्वप्न समाप्त हो गया।
जब अजित प्रसाद जी ने वकालत शुरु की थी, तब वह 7/मासिक किराये के मकान में गणेशगंज में रहते थे। बाद में उन्होंने यह मकान अपने सहकर्मी वकील मुंशी भगवत सहाय से खरीद लिया था। बनारस से लौटने पर अजित प्रसाद जी ने पुराना मकान खुदवाकर नींव से नया बनवाया और उसका 'अजिताश्रम' नाम रखा। आजकल इसमें उनके दो जीवित पुत्र, एक पौत्र और उनके परिवार रहते हैं। अजिताश्रम गणेशगंज मोहल्ले का लब्ध प्रतिष्ठित मकान है और उसकी आज की कीमत एक करोड़ रुपए है।
इसी अजिताश्रम में रहकर अजित प्रसादजी ने 30 वर्ष तक निरन्तर जैन समाज और जैन धर्म की सेवा की।
1910 में अखिल भारतीय जैन सभा का वार्षिक अधिवेशन जयपुर में हुआ। अजित प्रसाद जी इस अधिवेशन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। सर्व सम्मति से यह निश्चय हुआ कि एक ब्रह्मचर्याश्रम की स्थापना की जाये। फलत: पहली मई 1911 अक्षय तृतीया के दिन हस्तिानपुर में श्री ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम की स्थापना की गई।
28 सितम्बर 1912 के दिन दिगम्बर जैन प्रान्तिक सभा का अधिवेशन बम्बई में हुआ। अजित प्रसाद जी इस अधिवेशन के भी अध्यक्ष मनोनीत किये गये। उनका अध्यक्षीय भाषण एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।
लखनऊ के हीवेट रोड़ स्थित अजिताश्रम में सन् 1916 दिसम्बर माह में भारत जैन महामण्डल तथा जीव दया सभा के विशाल सम्मिलित अधिवेशन हुए। अजिताश्रम का सभा मण्डप सजावट में लखनऊ भर में सर्वोत्तम था। इस सभा में महात्मा गाँधी पधारे थे। सभाध्यक्ष प्रख्यात पत्र सम्पादक बी.जी. होर्नीमन थे। वक्ताओं में गाँधी जी, बैरिस्ट विभाकर और एच.एस. पोलक थे। अधिवेशन में उपस्थिति इतनी थी कि छतों और वृक्षों पर लोग चढ़े थे। सामने की सड़क रुक गई थी। खड़े रहने