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जैन-विभूतियाँ
177 विरुद्ध प्रमाण न ला सका। उन्होंने विद्वानों को शास्त्र-परीक्षण की एक
नई दिशा प्रदान की। - सन् 1923 में दिल्ली में अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद की स्थापना हुई। इसके संस्थापकों में पं. जुगलकिशोर मुख्तार अग्रणी थे।
सन् 1921 में 'उपासनातत्त्व', 1922 में 'विवाह समुद्देश्य', 1925 में 'विवाहक्षेत्र पकाश' व 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार की प्रस्तावनां', 1935 में 'स्वामी समन्तभद्र', 1942 में 'रत्नकरण्डश्रावकाचार का अनुवाद', 1943 में 'वृहत्स्वयंभूस्तोत्र का अनुवाद' और 1944 में 'सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ' का प्रकाशन हुआ। अप्रेल 1955 में समन्तभद्राचार्य के 'रत्नकरण्डश्रावकाचार' की विस्तृत व्याख्या 'समीचीन धर्मशास्त्र' नाम से प्रकाशित हुई।
अन्तर्जातीय विवाह के समर्थन में आपने एक पुस्तक लिखी। समाज में बहुत हल्ला हुआ। दस्सा-पूजा पर भी आपने एक किताब लिखी एवं कोर्ट में गवाही भी दी। इस पर आपको जातिच्युत घोषित कर दिया गया। यह घोषणा स्वत: अपनी मौत मर गई।
5 दिसम्बर, 1943 के दिन सरसावा के इस संत पं. जुगल किशोर मुख्तार का सहारनपुर में भव्य सार्वजनिक सम्मान किया गया।
मुख्तार साहब के 32 निबन्धों का लगभग 750. पृष्ठीय एक संग्रह सन् 1956 में 'जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश' प्रथम खण्ड नाम से प्रकाशित हुआ था। तदुपरान्त 1963 में समाज सुधार, अंधविश्वासों एवं अज्ञानपूर्ण मान्यताओं-प्रथाओं आदि की तीव्र आलोचना, राष्ट्रीयता पोषण एवं राजनीतिक दशा, हिन्दी प्रचार, जैन नीति, जैन उपासना का स्वरूप, जैनी भक्ति का रहस्य आदि अनेक उपयोगी विषयों को समाविष्ट किये 41 मौलिक निबन्धों का संग्रह 'युगवीर-निबन्धावलीप्रथम खण्ड' के रूप में प्रकाशित हुआ।
उसी श्रृंखला में सन् 1967 में 872 पृष्ठीय एक अन्य संकलन 'युगवीर निबन्धावली-द्वितीय खण्ड' नाम से प्रकाशित हुआ, जिसमें मुख्तार साहब के उत्तरात्मक, समालोचनात्मक, कृति परिचयात्मक,