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________________ 174 जैन-विभूतियाँ पढ़ाई करते समय ही 16 वर्ष की किशोरावस्था में सन् 1893 में उनका विवाह तीतरों के मुंशी होशियार सिंह की सुपुत्री से हो गया। 7 अक्टूबर, 1896 को सरसावा में उनके पहली पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने सन्मतिकुमारी रखा। वह प्लेग से 24 जनवरी, 1907 को देवबन्द में कालकवलित हो गई। तदनन्तर 7 दिसम्बर, 1917 को सरसावा में दूसरी पुत्री विद्यावती का जन्म हुआ। जब वह मात्र तीन माह की थी, उसकी माँ इस संसार से कूच कर गई और 28 जून, 1920 को क्रूर काल ने मोतीझरे के बहाने उस बच्ची को भी छीनकर मुख्तार साहब को 42 वर्ष की वय में नितान्त एकाकी कर दिया। अपनी पुत्रियों से उन्हें इतना लगाव रहा कि कालान्तर में उनकी स्मृति में उन्होंने आकर्षक बाल ग्रन्थमाला के प्रकाशन हेतु 'सन्मतिविद्या-निधि' स्थापित की। एण्ट्रेन्स परीक्षा उत्तीर्ण करते ही जीविका की समस्या सामने आई। इधर-उधर नौकरी तलाश की। मन माफिक काम नहीं मिला तो नवम्बर 1899 में बम्बई प्रान्तिक सभा में वैतनिक उपदेशकी ग्रहण कर ली, किन्तु वह उनकी अन्तरात्मा को रास नहीं आई और डेढ़ माह बाद ही उसे छोड़ दिया। स्वतन्त्र रोजगार की दृष्टि से 1902 में मुख्तारी की परीक्षा पास की और सहारनपुर में प्रैक्टिस प्रारम्भ की। 1905 में वह देवबन्द चले आये और वहाँ 11 फरवरी, 1914 तक मुख्तारी करते रहे। सरसावा की जैन पाठशाला में पढ़ते समय ही किशोर जुगलकिशोर में लेखन प्रवृत्ति प्रस्फुटित हो चली थी। 8 मई, 1896 के 'जैन गजट' (देवबन्द) में जब वह कक्षा 8 के छात्र थे, उनका पहला लेख, जो कॉलेज की स्थापना के समर्थन में था, छपा था। तदनन्तर 'जैन गजट' में प्राय: उनके लेख प्रकाशित होते रहे। 1 जुलाई, 1907 को इस साप्ताहिक पत्र के सम्पादन का भार उन्हें ही मिला जिसका निर्वहन वे 31 दिसम्बर, 1909 तक करते रहे। . 1 सितम्बर, 1907 के अग्रलेख में उन्होंने पत्रों में प्रकाशित होने वाले अश्लील विज्ञापनों का विरोध किया। सम्भवतया विज्ञापनों के संशोधन पर देश में सबसे पहले आवाज उठाने वाले सम्पादक वही थे।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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