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जैन-विभूतियाँ सरदार पटेल ने जब यह तलवार ही तोड दी तो फिर राजस्थान का शौर्य कहाँ रहा? अपने अकाट्य तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए तथा संघर्षरत रहते हुए आखिर आपने आबू पर्वत सहित सिरोही को राजस्थान में सम्मिलित करवा कर ही चैन की सांस ली।
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल से लोहा लेना कोई साधारण बात नहीं थी। फिर भी कोमल कुसुम सम सहृदय सरदार पटेल श्री मेहता से प्रसन्न थे और उन्हें अपना विश्वासपात्र मानते थे। सरदार पटेल हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे किन्तु नेहरू जी हिन्दुस्तानी के पक्षधर ही नहीं, कट्टर समर्थक थे। ऐसी विषम परिस्थिति में खुले तौर पर पं. नेहरू का विरोध करने का साहस भला कौन कर सकता था। सरदार पटेल ने श्री मेहता को अपने निवास पर बुलवाया और अपने मन की, राष्ट्रहित की यह बात कही। उनके ही निर्देश पर श्री मेहता सरदार पटेल के कुछ अन्य विश्वसनीय साथियों के साथ लालटेनें लेकर रात-रात भर सदस्यों के घरों पर घूमते रहे और उन्हें हिन्दी के हिमायती बनाते रहे। परिणाम अनुकूल और सुखद रहा और हिन्दी देश की राजभाषा स्वीकार कर ली गयी।
सरदार पटेल की भाँति श्री नेहरू भी श्री मेहता की कर्तव्यपरायणता, कर्मठता, स्पष्टवादिता, देशभक्ति और चरित्र की उत्कृष्टता से प्रभावित थे। उन्होंने श्री मेहता को, विशेष रूप से एक संसदीय मण्डल के साथ कश्मीर में सैन्य स्थिति का अध्ययन करने के लिए भेजा। 18000 फीट से भी अधिक ऊँचाई पर सैन्य अधिकारियों ने उन्हें देश की सीमा-स्थिति का अवलोकन करवाया और सुरक्षा उपायों पर विचार-विमर्श किया। श्री बलवंतसिंह मेहता को भारतीय संविधान पारित करवाने का भी प्रस्ताव प्रस्तुत करने का ऐतिहासिक गौरव व श्रेय प्राप्त हुआ। श्री मेहता अन्तरिम संसद (लोकसभा चुनाव के पूर्व) के भी सदस्य रहे।
आप राजस्थान में जयनारायण व्यास के मंत्रिमण्डल (1951-52) में उद्योग, खनिज व विकास मंत्री रहे। आपने अत्यन्त अल्पकालीन मंत्रीपद सुशोभित करते हुए भी राज्य व जनहित के कई कार्य किये, जिनमें खनिज मालिकों के एकाधिकार समाप्त करना, कई वस्तुओं पर चुंगी समाप्त करना,