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जैन-विभूतियाँ सुनीतिकुमार चटर्जी ने लिखा है-"उनकी रचित जैन धर्म सम्बंधी तथ्यपूर्ण पुस्तक पढ़कर, जैन धर्म के विषय में कॉलेज में पढ़ते समय जो धारणा बनी थी उसका निरसन करना पड़ा और जैन धर्म की गम्भीरता, महत्त्व एवं ऐतिहासिक गौरव के बारे में भी कुछ जान सका।''
साहित्य साधना में निरत रहते हुए आप जैन संस्थाओं के कार्यक्रर्मों में भाग लेते थे। 'अजीमगंज श्वेताम्बर सभा' के आप प्रथम सभापति थे। इन्हीं के सभापतित्व में स्थानीय विद्यालय में इस सभा की बैठक होती, जहाँ कि धर्म एवं विविध सामाजिक विषयों पर विचार-विमर्श किया जाता। मुर्शिदाबाद जैन एसोशियेसन से भी वे संयुक्त थे। प्रख्यात पुरातत्त्वविद् श्री पूरणचन्द जी नाहर के साथ आपका मैत्री सम्बन्ध था। अजमेर में अनुष्ठित 'ओसवाल महासम्मेलन' में भाग लेने के लिए आप नाहर जी के साथ गये थे। वहाँ नाहर जी की अस्वस्थता के कारण विषय निर्वाचन समिति का कार्य संचालन भी आपको ही करना पड़ा था। पं. सुखलालजी, वासुदेव शरण अग्रवाल, दलसुखभाई मालवणिया आदि विद्वानों के साथ भी आपका सम्पर्क था।