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जैन-विभूतियाँ
41. श्री पूरणचन्द श्यामसुखा (1882-1967)
जन्म
पिताश्री
दिवंगत
157
: अजमीगंज,
: महताबचन्द शयामसुखा
: कलकत्ता, 16 अप्रेल,
1967
1882
बंगाल के साथ जैन समाज का सम्बन्ध बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है। तथापि जैन धर्म एवं इतिहास सम्बन्धी साहित्य बंगला भाषा में बहुत कम उपलब्ध है। जिन विद्वानों ने जैन शास्त्रों को आत्मसात कर मौलिक रचनाएँ की या अनुवाद द्वारा बंगला भाषा के इस अभाव को दूर करने में सहायता की उनमें श्री पूरणचन्द जी श्यामसुखा का स्थान सर्वोपरि है। आपने अठारह वर्ष की अल्पायु से ही लिखना प्रारम्भ किया एवं जीवन पर्यन्त साहित्य साधना के शुभ कार्य में व्यस्त रहे। इस अवधि में उन्होंने जो पुस्तकें, लेख और कथाएँ लिखीं वह उनके सतत् अनुशीलन एवं मौलिक सोच की परिचायक हैं ।
आपका जन्म सन् 1882 के अगस्त महीने में मुर्शिदाबाद के अजीमगंज शहर में हुआ था। आपके पिता का नाम महताबचन्द जी था । वे बहुत सम्पन्न नहीं थे अतः जियागंज निवासी राय धनपतसिंह जी बहादुर के यहाँ नौकरी करते थे। यही कारण था कि एण्ट्रेंस परीक्षा के पश्चात् ही पूरणचन्द को भी नौकरी में प्रवेश करना पड़ा। आप को मातृ वियोग तो पहले ही हो चुका था। अब पितृवियोग होने से परिवार का पूरा दायित्व आप के कंधों पर आ पड़ा। उस समय की परम्परानुसार आपका विवाह मात्र 16 वर्ष की आयु में ही हो चुका था ।
रायधनपत सिंह जी बहादुर के पुत्र श्री महाराज बहादुर सिंह जी के यहाँ आपने प्रथमत: मैनेजर के निर्देशानुसार चिट्ठी-पत्रियों का मशविदा तैयार करना प्रारम्भ किया। आपकी योग्यता अनुभव कर महाराज बहादुर