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जैन - विभूतियाँ
वाले वे पहले मारवाड़ी थे। वे एक सफल वकील सिद्ध हुए । प्रसिद्ध समाजवादी नेता अच्युत पटवर्धन के पिता श्री हरि भाऊ की प्रेरणा से वे देश के स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़े। डॉ. एनी बेसेंट द्वारा संस्थापित 'होम रूल लीग' के वे सदस्य बने । शुरु-शुरु में वे लोकमान्य तिलक के पक्षधर थे पर अन्ततः महात्मा गान्धी के अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन में भाग लिया एवं जल्दी ही जिले में काँग्रेस की राजनैतिक गतिविधियों के सूत्रधार बन गये । अहमदनगर म्यूनिसिपलिटी के वे वर्षों तक प्रमुख रहे। सन् 1927 एवं 1937 में वे महाराष्ट्र की लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य चुने गये । द्वितीय महायुद्ध के दौरान सन् 1940 में महात्मा गान्धी ने उन्हें सविनय अवज्ञा आन्दोलन के एक सौ सत्याग्रहियों में चुना। तभी युद्ध विरोधी भाषण देने के जुर्म में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 6 मास के लिए जेल भेज दिया। सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने पर सरकार ने एक बार फिर उन्हें जेल भेज दिया। इस बार जेल से छूटने पर उन्होंने वकालत छोड़ दी और पूर्णतः देश सेवा को समर्पित हो गये ।
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वे जैन कॉन्फ्रेंस के मद्रास में सम्पन्न हुए ग्यारहवें अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। आपने अपनी 63वें जन्म दिन पर 63 हजार रुपये का ट्रस्ट कायम किया था ।
सन् 1946 में चुनाव जीतने के बाद वे सर्वसम्मति से महाराष्ट्र विधि मंडल (धारा सभा) के स्पीकर चुने गये । उन्होंने अपने कार्य को बखूबी अंजाम दिया। सन् 1952 में स्पीकर पद से मुक्त होने के बाद वे सामाजिक कार्य क्षेत्र की ओर मुड़े। वे आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन से भी जुड़े। जिले की अनेक संस्थाओं, यथा- कुष्ट धाम, वृद्धाश्रम, पिन्जरापोल, जिला बोर्ड, ओसवाल पंचायत, जैन कान्फ्रेंस आदि उनके सक्रिय सहयोग से लाभान्वित हुई। आपको स्थानकवासी जैन समाज के अमृत महोत्सव पर "समाज रत्न" एवं अन्यान्य सभाओं द्वारा समाज भूषण, समाज- गौरव विरुदों से सम्मानित किया गया। वे सन् 1968 में दिवंगत हुए ।